उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त 1995 से सरकारी विद्यालयों में मिड-डे-मील शुरू किया गया। इसका उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़ाने, उपस्थिति में वृद्धि, ड्रॉप आउट रोकने, शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देने समेत विद्यार्थियों के पोषण में वृद्धि करना है। इसके तहत शहरी समेत सभी ग्रामीण क्षेेत्रों के विद्यालयों में पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को मध्यान्तर में पोषाहार खिलाया जाता है।
पहली से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 450 ग्राम कैलोरी, करीब 12 ग्राम प्रोटीन, छठी से आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को 700 ग्राम कैलोरी व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराना होता है। सरकारी विद्यालयों के साथ-साथ ऐसे मदरसों के विद्यार्थियों को भी पोषाहार उपलब्ध कराया जा रहा है, जहां पैराटीचर का पद स्वीकृत है।
कौन सुने, किसे सुनाए पोषाहार बनाने वाले कुक का कहना है कि किसी माह में 15 दिन से कम कार्य दिवस हुए तो महज 500 रुपए का ही भुगतान किया जाता है। दीगर बात है कि कुछ पोषाहार प्रभारी इन्हें जेब से भुगतान कर देते हैं। वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी 180 रुपए है। गांव में कुली या फसल कटाई भी करंे तो 200 से 250 रुपए तक मिल जाते हैं।
237 विद्यालयों में खुले में पक रहा है जिले के 1608 विद्यालयों में से 1460 में मिड डे मील के तहत पोषाहार की व्यवस्था है। इनमें 1223 विद्यालयों में रसोई घर की सुविधा उपलब्ध है। जबकि 237 विद्यालयों में रसोई भवन नहीं है। इससे सर्दी-गर्मी में पोषाहार खुले में पकाया जा रहा है।
अभिभावकोंं समेत शिक्षकों का भी मानना है कि खुले में खाना बनाने के दौरान स्वच्छता का ध्यान नहीं रह पाता। इसके अलावा बारिश के दिनों में बरामदे व कक्षा-कक्ष में पोषाहार बनाने से विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होती है।
ये है पोषाहार का मैन्यू सोमवार रोटी-सब्जी मंगलवार चावल, दाल बुधवार रोटी-दाल गुरुवार खिचड़ी,दाल, चावल शुक्रवार रोटी-दाल शनिवार रोटी-सब्जी (सप्ताह में एक बार फल )