जन्माष्टमी की बधाइयों का गायन एक महीना पहले से प्रारम्भ हो जाता है जन्माष्टमी की सुबह ठाकुर जी की मुख्य बड़ी मूर्ति को सुबह पन्चामृत से स्नान कराया जाता है । गोबर से चोक लीपा जाता है व बंदनवार आदि बांधी जाती है । रात्रि 11.30 पर लड्डू गोपाल का पन्चामृत अभिषेक किया जाता है और 12 बजे जन्माष्टमी पर जन्म के दर्शन खुलते है।
दूसरे दिन प्रात: 10 बजे नन्दोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमे बच्चे गोपी, ग्वाल बन कर मुख्य चोक में दही , हल्दी के छिडक़ाव पर खूब नृत्य करते है ठाकुर जी को पालने में झुलाया जाता है।
मंदिर सेवा से जुड़े ओपी पाण्डे व भगवान भण्डारी ने बताया कि श्रद्धालु इस अवसर पर खूब बधाईयां लुटाते है और पुष्टिमार्गीय पद गाये जाते है। सभी भोग पुजारी स्वंय मन्दिर के भीतर रसोई में शुद्धता के साथ तैयार करते है ओर इस अवसर पर बेसन के लड्डू, अजवायन के लड्डू, सोंठ के लड्डू, मठरी, खाजा, मीठी सेव, मीठी मठरी , नमकीन सेव, गूंजी , आटे की चक्की व विभिन्न पँजिरियों का ठाकुर जी को भोग धराया जाता है।
नित्य सेवा में प्रात: दूध के बाद लड्डू, मठरी, मिश्री मक्खन फिर राजभोग में चावल दाल कढ़ी, फुल्का, खीर का भोग लगता है । दोपहर बाद उत्थापन में फलाहार व संध्या भोग में तलवा पूड़ी, सूखी सब्जी, मीठे में रबड़ी आदि का भोग बनता है । इसी प्रकार शयन आरती के बाद ठाकुर जी को दूध धराया जाता है । ततपश्चात मुख्य सिंघासन से ठाकुर जी को शयन कक्ष में बिस्तर पर शयन कराया जाता है और ठाकुर जी के शैय्या के पास अल्पाहार का टिफिन भी रखा जाता है ताकि रात्रि में बालगोपाल को भूख लगे तो उपयोग कर लेवे।
ठाकुर जी के निज श्रृंगार में सिर्फ मोगरा, गुलाब, जूही , चमेली ओर हारसिंगार के पुष्प ही प्रयोग होते है । हर त्योहार पर ठाकुर जी का श्रृंगार पोशाक का रंग त्योहार के अनूकूल होता है । सर्दी में ठाकुर जी के आगे गर्म भट्टी रखी जाती है और गर्मी में खस की टाटियां ओर आगे पानी की बड़ी परात रख कर ठंडक का वातावरण बनाया जाता है