scriptआओ गांव चले: बाढ़ में उजडऩे के बाद फिर बसाया गया था नानेर | Naner was resettled after being destroyed in the flood | Patrika News

आओ गांव चले: बाढ़ में उजडऩे के बाद फिर बसाया गया था नानेर

locationटोंकPublished: Oct 25, 2020 03:45:46 pm

Submitted by:

pawan sharma

आओ गांव चले: बाढ़ में उजडऩे के बाद फिर बसाया गया था नानेर

आओ गांव चले: बाढ़ में उजडऩे के बाद फिर बसाया गया था नानेर

आओ गांव चले: बाढ़ में उजडऩे के बाद फिर बसाया गया था नानेर

पीपलू(रा.क.). नानेर गांव का इतिहास काफी प्राचीन रहा। यहां की बसावट ऊंचे नीचे टीबों पर बसी होना ही इसके स्पष्ट प्रमाण को बताती है। गांव में करीब 500 से अधिक घर हैं तथा 3000 से अधिक लोग निवास करते हैं। यहां शिक्षा की दृष्टि राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सहित निजी विद्यालय हैं। चिकित्सा की दृष्टि से राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं।
यहां अ श्रेणी का पशु चिकित्सालय भी स्थित हैं। गांव में मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी, दुग्ध उत्पादन हैं। नानेर गांव टोंक से मालपुरा झिराना से टोडारायसिंह सडक़ मार्ग पर स्थित होने से आवागमन की दृष्टि से काफी विकसित हैं। बुजुर्ग बताते है कि यह गांव पूर्व में सहोदरा नदी में आई बाढ़ में बह गया था, जो बाद में फिर से आबाद हुआ है।
सन 1994 से पहले सरसों के तूड़े को किसानों द्वारा वेस्ट होने के हालातों में रबी फसल की तैयारी से पहले जलाया जाता था, लेकिन जैसे ही इस तूड़े से लकड़ी के गुट्टे बनने शुरू हुए तथा सरसों का वेस्ट तूड़ा बिकने लगा तो इसने किसानों के अतिरिक्त आमदनी के द्वार खोल दिए। इस आय से कई गांवों में जर्जर धार्मिक स्थलों के जीर्णोद्धार, तो कई गांवों में भग्नावेश में तब्दील हुए प्राचीन गढ़, देवालय, लोक देवताओं के स्थानों के विकास पर्यटन की दृष्टि से हुए। ऐसा ही नजारा टोंक जिले के नानेर गांव में सरसों के तूड़े से होने वाली आय से ग्रामीणों ने एक समिति गठित करके पर्यावरण पारीस्थितिकी प्राचीन विरासत संरक्षण को लेकर कराए गए विकासोन्मुखी कार्यों में देखने में मिलता है।
विकास गाथा यूं हुई शुरु

गु रु महाराज सेवा समिति नानेर ने वर्ष 1994 में सर्वसमुदाय की बैठक रख कर गांव के सभी धार्मिक स्थलों का विकास करने के लिए प्रति वर्ष सरसों के तूड़े को समिति को निशुल्क दान में देने का प्रस्ताव रखा। जिसका सभी समुदाय के लोगों ने सहमति व्यक्त की। इससे समिति को सालाना 25-30 लाख रुपए की आय होने लगी। समिति ने सबसे पहले गढ़ गणेश व गुरु महाराज शिवालय के स्थलों का विकास कार्य करवाया। जहां सवा करोड़ रुपए की लागत से इन स्थलों पर आने वाले श्रद्धालु व पर्यटकों के ठहरने, स्नान करने, पीने के पानी, रोशनी समेत प्राकृतिक स्थल को सुरम्य बनाने को लेकर विभिन्न किस्मों के छायादार व रंग बिरंगे पुष्पों के पौधे लगाए। साथ ही शिवाड़ की तर्ज पर गढ़ गणेश व गुरु महाराज शिवालय का विकास कराया।
मेला का होता है आयोजन
महाशिवरात्रि व तेजा दशमी तथा चेत्र सुदी पूर्णिमा को विशेष मेलों सहित श्रावण मास में यहां विशेष धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन होते है। मेलों में ग्रामीण अंचल के लोग पहुंच कर इस स्थल के दर्शन करते है तथा रोजमर्रा के घरेलू जरूरत के सामानों को खरीदते हुए मेले का लुत्फ लेेते हैं।
सावन मास में पर्यटकों का लगता है तांता

नानेर गांव में सहोदरा नदी किनारे स्थित गढ़ गणेश शिवालय व गुरु शिवालय इन दिनों आस पास दूर दराज के श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र बना हैं।
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