कुछ ऐसा ही वाक्या आवां के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत 51 वर्षीय शिक्षक बद्री लाल बैरवा की हृदयघात से मृत्यु होने पर सामने आया है। मृतक बद्री लाल बैरवा पर ही पूरा परिवार आश्रित है।
बड़ा भाई लकवा ग्रस्त एवं छोटे भाई की भी पूर्व में मृत्यु होने से ये बद्री लाल सदमें मे था। सन्तानों को रोजगार नहीं मिलने का दंश भी परिवार झेल रहा था, यहीं नहीं विगत वर्ष सडक़ दुर्घटना में इनके स्वयं के चोटिल होने के साथ लाखों के खर्च ने इनको कर्जे तले दबा दिया।
शोक संतृप्त पुत्र प्रतीक बैरवा ने बताया कि उसके पिता का लगभग तीन वर्ष पूर्व हृदय की चिकित्सा करवाई थी, जिस पर लगभग तीन लाख का खर्च आया था। तब से अब तक वो कागजी खानापूर्ति में ही उलझे रहे, प्रकरण को पूर्ण कर समय पर सम्बंधित कार्यालय में प्रस्तुत करने के बावजूद भुगतान नहीं हो पाया।
उसके पिता देवली, टोंक और उपपिदेशक कार्यालय के चक्कर लगाते मौत के आगोश में ही समा गए, लेकिन राहत नहीं मिल पाई। राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के जिला उपाध्यक्ष शिवपाल धाकड़ और सुरेन्द्र सिंह नरूका ने सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मांग की है कि गम्भीर रोगों के मेडिकल बिलों की जटिल प्रक्रियाओं का सरलीकरण करते हुए इस राशि का तुरन्त भुगतान करने की कार्यवाही अमल में लाई जानी चाहिए।इस मद में भी अर्से तक बजट का आवंटन नहीं करना कर्मचारी और उसके परिवार के हितों पर कुठाराघात करने
वाला है।
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