सचिव नन्दकिशोर बैरवा ने बताया कि 2004 में ये संस्था बनाई गई थी, लेकिन हमेशा से ही इन मासूमों का जीवन अंधेरे में ही चल रहा है। बाल अधिकारिता विभाग इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। संस्था की शुरुआत से अब तक आवर्तक मद (जरूरती सामान) लेने के लिए राशि नहीं मिली। फर्नीचर, कपड़े, स्कूल यूनिफार्म, दूसरी यूनिफार्म, बच्चों के खिलौने आदि किसी भी सामान के लिए कोई राशि नहीं दी गई।
बाल गृह के बच्चे काफी होनहार हैं, लेकिन इनकी जरूरतें हमेशा अधूरी रह जाती है। संस्था से अब तक 9 बालक सरकारी कार्यालयों में अच्छे पद पर लग चुके हैं। संस्था में अभी निर्धारित रूप से 54 बच्चे हैं। राशन के अलावा अन्य सामग्री के लिए अब पांच लाख रुपए से अधिक कर्जा हो चुका है। बच्चों के नया सत्र शुरू होते ही बच्चों को नए कोर्स व नई युनिफार्म की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके भी 26 हजार रुपए उधार हो चुके। सब्जियां बाजार से लाने के लिए राशि नहीं होती है, हमने बाल गृह के बाहर से बच्चों के साथ मिलकर सब्जी उगा रखी है।
भवन की हालत भी हो रही बदतर
बालगृह जिस भवन में चलाया जा रहा है उसकी हालत भी बदतर होती जा रही है। दीवारों में आ रही सीलन से पूरे भवन में बदबू रहती है। ना ही इसकी कभी मरम्मत हुई और ना ही रंग-रोगन कराया गया।