स्थिति यह है कि रात को आई प्रसूता सुबह अन्य की छुट्टी होने तक पलंग का इंतजार करती रहती है। जननियों व शिशुओं की सुरक्षा को लेकर 16 करोड़ की लागत से शहर में ये अस्पताल बनवाया गया है। इसके बावजूद अस्पताल प्रबन्धन की उदासीनता जननियों पर भारी पड़ रही हैं। जिलेभर से आई कई जननियों को नवजात के साथ पलंग के अभाव में नीचे या फिर टेबल पर लिटाना पड़ रहा है।
जबकि सरकार की ओर से जननी-शिशु सुरक्षा योजना पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। वार्ड में भर्ती रेडियावास निवासी सुनिता सैनी ने बताया कि पलंग मांगा तो यह कहते हुए मना कर दिया कि जब खाली होगा तो ही तो देंगे। कालीपलटन निवासी फरजाना, लोहरवाड़ा निवासी सुनिता को भी आठ घंटे टेबल पर बिताने के बाद पलंग नसीब हो पाया।
उल्लेखनीय है कि अस्पताल में प्रतिदिन 35 से 40 प्रसव होते हैं। इनमें सामान्य व जटिल प्रसव शामिल हैं। जटिल प्रसव वाली जननियों को सात दिन भर्ती रखा जाता है। जबकि सामान्य प्रसूता को 72 घंटे पश्चात छुट्टी दे दी जाती है।
इर्द-गिर्द रहती है भीड़
जनाना वार्ड में प्रसूताओं के साथ रिश्तेदारों की भारी भीड़ रहने से जननियों व शिशुओं में संक्रमण का अंदेशा बना हुआ है। नर्सेज का कहना है कि मिलने आने वालों का तांता ही प्रसूताओं का दर्द बढ़ा रहा है। जबकि एक प्रसूता के साथ एक परिजन को ही वार्ड में होना चाहिए। कई प्रसूताओं के साथ तो दर्जनभर लोग बैठे रहते हैं। चिकित्साकर्मियों के मुताबिक लेबर रूम (प्रसव कक्ष) में भी पुरुषों के प्रवेश करने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है।
जनाना वार्ड में प्रसूताओं के साथ रिश्तेदारों की भारी भीड़ रहने से जननियों व शिशुओं में संक्रमण का अंदेशा बना हुआ है। नर्सेज का कहना है कि मिलने आने वालों का तांता ही प्रसूताओं का दर्द बढ़ा रहा है। जबकि एक प्रसूता के साथ एक परिजन को ही वार्ड में होना चाहिए। कई प्रसूताओं के साथ तो दर्जनभर लोग बैठे रहते हैं। चिकित्साकर्मियों के मुताबिक लेबर रूम (प्रसव कक्ष) में भी पुरुषों के प्रवेश करने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है।
स्वच्छता पर नहीं ध्यान
अस्पताल के अधिकतर वार्डों में गंदगी की भरमार है। शौचालयों की नियमित सफाई नहीं होने से अस्पताल परिसर में प्रसूताओं व परिचितों को नाक पर रूमाल रखना पड़ता है। सभी वार्डों की कमोबेश यही स्थिति है।
अस्पताल के अधिकतर वार्डों में गंदगी की भरमार है। शौचालयों की नियमित सफाई नहीं होने से अस्पताल परिसर में प्रसूताओं व परिचितों को नाक पर रूमाल रखना पड़ता है। सभी वार्डों की कमोबेश यही स्थिति है।
प्रसव अधिक, पलंग कम
सौ पलंगों की क्षमता वाले मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अस्पताल में क्षमता से अधिक डेढ़ सौ पलंग है। प्रसव का आंकड़ा अधिक रहने से जननियों को पलंग उपलब्ध नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति कभी-कभार ही आती है। पलंग खाली होते ही प्रसूता को उपलब्ध करा दिया जाता है।
जे. पी. सालोदिया, प्रमुख चिकित्साधिकारी सआदत अस्पताल टोंक।
सौ पलंगों की क्षमता वाले मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अस्पताल में क्षमता से अधिक डेढ़ सौ पलंग है। प्रसव का आंकड़ा अधिक रहने से जननियों को पलंग उपलब्ध नहीं हो पाते। ऐसी स्थिति कभी-कभार ही आती है। पलंग खाली होते ही प्रसूता को उपलब्ध करा दिया जाता है।
जे. पी. सालोदिया, प्रमुख चिकित्साधिकारी सआदत अस्पताल टोंक।