राजावत ने मुंह से जवाब देने की बजाय अपने कर्मों से जवाब ठानी और इसको चरितार्थ भी किया। राजावत ने साफा एवं धोती बांधना सिखाने व अन्य कई कीर्तिमान बनाए। साफे में इतनी महारथ पाई की वे एक मिनट में छह लोगों के सिर पर साफा बांधने, आंखों पर पट्टी बांध कर एक मिनट में चार व्यक्तियों के सिर पर साफा बांधने के साथ विश्व के सबसे छोटे साफे 0.9सेमी, विश्व का सबसे छोटा तिरंगा(0.3सेमी) साफा गेहूं व चावल(0.2सेमी) पर साफे बांध चूके हैं।
राजावत अब तक करीब 8 हजार लोगों को ऑफलाइन व डेढ़ लाख लोगों को ऑनलाइन साफा बांधना सीखा चुके हैं, जिसमें जोधपुरी, जयपुरी, जैसलमेरी, बाड़मेरी, देवासी समाज, बीकानेरी, नागौरी मेवाड़ी, हरियाणवी , मारवाड़ी पगड़ी, मराठी, गुजराती, पंजाबी आदि प्रकार के साफे बांधते हैं। लोग आज उन्हें साफामैन, रंग बिरंगी पगड़ी वाले गुरुजी आदि नामों से पुकारते हैं। प्रदेश के टोंक, पाली, बाड़मेर,अजमेर, अजमेर,बुंदी, भीलवाड़ा आदि जिलों में प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर चुके है।
तालाब की मिट्टी से बनाई मूर्तियां गत वर्ष जब देश में लॉकडाउन लगा हुआ था तो महापुरुषों की जयंती मनाए जाने के लिए तस्वीर व मूर्ति नहीं मिल पाई। ऐसे में गांव के तालाब से काली मिट्टी एकत्र कर के महाराणा प्रताप की मूर्ति बनाने का प्रयास किया, वो भी बिना किसी औजार के सहारे से। राजावत आधा दर्जन से अधिक महापुरुषों की अब कुछ ही घंटों में मूर्ति निर्माण कर जयन्ती मना चुके हैं। राजावत फुल, पत्ते, राख रेत अनेक व्यर्थ सामग्री से भी महापुरुषों के चित्र बना देते हैं। वहीं अपना गुल्लक अपना बैंक शुरू कर विद्यालय के सभी 121बच्चों को मिट्टी के गुल्लक बांट रखें है।