पशु पालन विभाग अनुसार मालपुरा शहरी क्षेत्र में 5 पशुओं में, लांबाहरिसिंह में 13, पारलीए, बृजलालनगर, धोली, पचेवर, सिधौलिया व तांतिया में 3-3 पशुओं में, झाड़ली में 10 पशुओं में, बागडी में 7 पशुओं में, देवल में 15 पशुओं में, किरावल, बरोल, चांदसेन, चांवडिया में 5-5 पशुओं में, मोरला 16 पशुओं में, कचौलिया में 12 पशुओं में, कुराड, सोडा में 4-4 पशुओं में, आवडा में 14 पशुओं में, आटोली में 9 पशुओं में, नगर में 11 पशुओं में, कोटोली में 6 पशुओं में, देशमा, डूगरीकला, टोरडी, गनवर व रिण्डल्यिा में 2-2 पशुओं में एवं चैनपुरा ग्राम पंचायत के चौसला में सबसे ज्यादा 20 पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज पाई गई है, जिनका इलाज किया जा रहा है।
पशु चिकित्सा प्रभारी डॉ. अनिल परतानी गांवों में किसानों को सलाह दे रहे की बीमारी मुख्यतरू मानसून के समय फैलती है और इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है, लेकिन पशुपालक अपने मवेशियों का विशेष ध्यान रखते हुए इस रोग से बचाव कर सकता है।
पशुपालकों को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि इस बीमारी से प्रभावित क्षेत्रों में अपने पशुओं को एवं स्वयं को जाने से रोकना चाहिए। बीमारी से प्रभावित क्षेत्र से पशुओं की खरीदारी नहीं करनी चाहिए अपने प्रभावित पशुओं को चरने के लिए बाहर नहीं भेजे।
प्रभावित पशुओं को द्वितीय संक्रमण होने से बचाने के लिए एंटीबायोटीक्स से उपचार अतिशीघ्र करवाने एवं संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से लगभग एक माह तक अलग रखना चाहिए। प्रभावित पशुओं के बाड़े में मच्छर एवं मक्खियों का संक्रमण ना होने दे।
इसके लिए साफ.सफाई बाड़े में धुआं एवं कीटनाशक दवाइयों का स्प्रे करें इसके साथ ही इस रोग से बचाव के लिए एंटीबायोटिक एंटी एक्प्लेमेटरी और एंटीहीस्टामीनिंक दवाएं भी दी जा सकती है।