आशीष शास्त्री और चन्द्रप्रकाश हरसोरा ने बताया कि मुनि संघ के सान्निध्य में श्रद्धा और विश्वास के साथ किए जा रहे भगवान के नित्य अभिषेक, शान्ति-धारा, आहार-चर्या, मंगल- प्रवचन और जिज्ञासा समाधान में धर्म की महिमा उजागर होने के साथ सदाचरण अपनाने की सीख मिल रही है।भारतीय संस्कृति और सभी धर्मों के ग्रन्थों का रसोस्वादन होने के साथ नव पीढ़ी मे देश-पे्रम का संचार हो रहा है।
सकल दिगम्बर जैन धर्म प्रभावना समिति के महामंत्री पवन कुमार जैन ने बताया कि समवशरण जिनालय, सहस्त्रकूट जिनालय और नन्दीश्वर जिनालय के 13 से 18 फरवरी तक होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव के आयोजन की तैयारी का प्रतिदिन जायजा लेकर इसे ऐतिहासिक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। मन्दिरों के चल रहे निर्माण कार्यों को समय पूर्व पूरा करने के लिए गति बढ़ाने के हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं।
नियमित पठन करने को पे्ररित किया
ग्रन्थ धर्म और उसकी क्रियाओं का बोध कराने के साथ हमारे जीवन को जीने की सही दिशा प्रदान करते हैं। आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रशस्त कर मोक्ष का द्वार खोलते हैं।
हमें मूल ग्रन्थों को नहीं भूलना चाहिए। तीर्थ पर श्रावकों की जिज्ञासाओं का समाधान और मंगल-प्रवचन करते हुए मुनि ने जिनवाणी, भक्तामर स्त्रोत्र और तत्वार्थ सूत्र की गहराई समझाई तथा संस्कृत ग्रन्थों का महातम्य बताकर इनका नियमित पठन करने को पे्ररित किया।
उन्होंने कहा कि लगातार अभ्यास कर और गलतियां दूर कर हम संस्कृत को भी पढ़ और समझ सकते हैं। जैन दर्शन के सहित्य और सन्तों की रचनाओं की बारीकियां समझाते हुए मुनि ने जिज्ञासुओं को स्वाध्याय का पाठ पढ़ाया।
इस अवसर पर मुनि ने शक्ति, सम्पदा, पद और सत्ता से अहंकार, व्यसन बढऩे के साथ दुसरों को कुचलने के भाव पैदा होने की व्याख्या कर इन पर अकुंश लगाने की राह भी दिखाई, कहा कि जिसके पास कुछ नहीं है वो ऊपर जाएगा और जिसके पास सब कुछ है वो नीचे जाएगा। इसी लिए साधु ने ये सब कुछ तज साधना का मार्ग अपनाया है।