माता के दर्शनार्थ श्रद्धालु मन्नत लिए दूर दूर से दंडवत या पदयात्रा कर हाजिरी लगाते है। कार्य पूरा होने पर भजन संध्या, सवामणी या अनुष्ठान करते हैं। पौराणिकता में 108 शक्तिपीठों में ब्रह्माणी माता का प्रमुख स्थान है। डाविका (डाई) नदी किनारे स्थित शक्तिपीठ का उल्लेख व्याघ्रपाद पुर महात्म्य में विस्तार से प्राप्त है, जिसमे व्याघ्रपादपुर नामकरण से पूर्व यह स्थान दुर्गा तीर्थ के नाम से जाना जाता था।
राजस्थान के ऐतिहासिक बिजोलिया शिलालेख में उत्कीर्ण संवत 1405 के चौहान सम्राट मोरेश्वर के अभिलेख में भी इसका उल्लेख है। पुजारी नंदकिशोर पाठक ने बताया कि सर्वप्रथम पुष्कर के ब्राह्मणों ने मंदिर में ब्रह्माणी माता की प्रतिमा स्थापित की। अटूट आस्था के बीच ब्रह्माणी माता का मंदिर श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
जहां भव्य मंदिर व धर्मशाला बनी हुई है। शक्तिपीठ ब्रहमाणी माता के दर्शनार्थ मध्यप्रदेश, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व राजस्थान समेत अन्य कस्बों से श्रद्धालु आते है। यहां पहाड़ी पर भृतहरि की गुफा, काला गोरा भैरू व जैन समाज की प्रतिमाए भी विराजित है। ब्रह्माणी माता मंदिर विकास समिति की ओर से वर्तमान में श्रद्धालुओं के परिक्रमा मार्ग का कार्य निर्माणधीन है।