दड़े का खेल नहीं होने से हजारों लोगों से खचाखच भरा रहने वाला गोपाल चौक भी इस बार वीरान रहा और वहां गोवंश व बच्चे चहलकदमी करते नजर आए। आसपास के बारह पुरो के युवक और युवतियां रंग बिरंगी पोशाकें पहनकर सज धज कर दड़े का खेल देखने आए, लेकिन गोपाल चौक में आकर उन्हें मायूस होकर वापस लौटना पड़ा।
कस्बे के 80 वर्षीय बुजुर्ग राधेश्याम चतुर्वेदी ने बताया कि आवां में दड़ा खेलने की परंपरा लगभग ढाई सौ वर्षों से चली आ रही है। इस बार कोरोना संक्रमण के चलते इस परंपरा के टूटने का बहुत दु:ख है। इस दौरान कुछ शरारती बच्चों ने दड़ा बनाकर गोपाल चौक में रख दिया। गांवों से आए युवक युवतियां इस दड़े के दर्शन कर ढोक लगाते भी देखें गए।
दड़े का खेल नहीं होने से आवां में मकर संक्रांति का उत्सव अधूरा रहा। कस्बे और आसपास के बारह पुरों के लोग दड़ा महोत्सव नहीं होने से मायूस नजर आए। गौरतलब है कि दड़े के खेल से हजारों किसानों की आशा बंधी रहती थी, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि दड़ा अकाल और सुकाल का संकेत भी देता था। इस दौरान कस्बे में बच्चे व युवक दिन भर छतों पर पतंगबाजी करते नजर आए और सारा आसमान ये काटा वो काटा के शोर से गुंजायमान रहा।
साइकिल से प्रदेश भ्रमण किया
उनियारा. पर्यावरण बचाने की मुहिम के तहत पर्यावरण प्रेमी भीखाराम चाहरसाइकिल यात्रा से सवाई माधोपुर से उनियारा पहुंच। पर्यावरण प्रेमी भीखाराम बीकानेर से साइकिल यात्रा से लगभग 1500 किमी की यात्रा कर सवाई माधोपुर से उनियारा पहुंचे। उनकी यात्रा लगभग 4000 किलोमीटर की होगी और 20 फरवरी को पूरी होगी। उनियारा पहुंचने पर भीखाराम का पर्यावरण प्रेमियों ने स्वागत कर फलाहार भी करवाया।
उनियारा. पर्यावरण बचाने की मुहिम के तहत पर्यावरण प्रेमी भीखाराम चाहरसाइकिल यात्रा से सवाई माधोपुर से उनियारा पहुंच। पर्यावरण प्रेमी भीखाराम बीकानेर से साइकिल यात्रा से लगभग 1500 किमी की यात्रा कर सवाई माधोपुर से उनियारा पहुंचे। उनकी यात्रा लगभग 4000 किलोमीटर की होगी और 20 फरवरी को पूरी होगी। उनियारा पहुंचने पर भीखाराम का पर्यावरण प्रेमियों ने स्वागत कर फलाहार भी करवाया।