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टोंक

टोडारायसिंह का नहीं हुआ विकास, जनप्रतिनिधि नही समझ पाए क्षेत्र का दर्द

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टोंकDec 06, 2018 / 09:05 am

pawan sharma

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टोडारायसिंह कस्बे में तेरहवी सदी में निर्मित प्राचीन महल, पर्यटन की दृष्टि से ऐसी दर्जनों प्राचीन विरासते भी राजनैतिक उपेक्षा का शिकार रही है।

टोडारायसिंह. राजनैतिक उपेक्षा व क्षेत्रीय जागरुकता के अभाव में गत चार दशक में समस्याओं से झूझते-झूझते आखिर टोडारायसिंह विधानसभा का अस्थित्व ही खत्म हो गया, पर समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। बीते दो दशक में जनप्रतिनिधियों ने क्षेत्र का दर्द नहीं समझा, और क्षेत्र की आवश्यकता राजनैतिक दलों के लिए मुद्दा व आमजन की समस्या बनकर रह गई।

उल्लेखनीय है कि सन् 1967 में मालपुरा से अलग होकर अस्थित्व में आए टोडारायसिंह विधानसभा में प्रथम स्थानीय प्रतिनिधित्व कांग्रेस से जगन्नाथ गुर्जर को मिला। विधानसभा के नौ चुनावों में पांच बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा के अलावा एक बार जनता दल ने प्रतिनिधित्व किया।
सन् 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने बीसलपुर बांध की नींव रखने के बाद क्षेत्र को सिंचाई व पीने के पानी की आस बंधी थी, लेकिन पेयजल के लिए बने बीसलपुर बांध के पानी को ही राजनीतिक दलों ने ही चुनावी मुद्दा बना डाला।
स्थिति यह है कि परिसीमन में विधानसभा मुख्यालय ही समाप्त हो गया, लेकिन प्रारम्भ से राजनैतिक उपेक्षा के शिकार रहे टोडारायसिंह क्षेत्रवासी यातायात, रोजगारन्मुख कार्यो के साथ उच्च स्तर की मूलभूत आवश्यकताओं से आज भी महरूम है।

आवश्यकताएं धरातल मिलने की मोहताज
बीते दो दशक में दूरगामी परिणाम व विकास के नए आयाम साबित होने वाली क्षेत्र की मूल आवश्यकताए आज भी धरातल मिलने की मोहताज है। वर्षों से लम्बित बीसलपुर-पहाड़ी क्षेत्र में प्रस्तावित बीसलपुर कन्जरर्वेशन रिजर्व क्षेत्र योजना का विकास नहीं होना, रोजगारन्मुख कार्यो में श्रीनगर के पास रिको एरिया घोषित कर उद्योग-धंधे विकसित नहीं करना, गौण कृषि मण्डी का सम्पूर्ण कृषि मण्डी में तब्दील नहीं होने से व्यापारी व किसानो के लिए मण्डी में दुकाने, प्लेटफार्म व ड्रोम जैसी सुविधाए विकसित नहीं होना, बीसलपुर बांध का ऑवर फ्लो पानी क्षेत्र के घारेड़ा, टोरडी व चांदसेन बांध में नहीं डालने से सिंचित कमाण्ड क्षेत्र व किसानो की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होना, कस्बे को जयपुर, कोटा, अजमेर व टोंक-सवाईमाधोपुर जिला मुख्यालय से सीधा बस जुड़ाव तथा द्रूतगामी व रात्रिकालीन बसों का संचालन नहीं होना, प्राचीन धरोहरो को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने समेत दर्जनो मांगे है, जिन्हें अभी अमलीजामा नहीं पहना पाए है।
जिसके चलते क्षेत्र पिछडऩे के साथ बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है जबकि बीते दो दशक में राजनैतिक दलो ने उक्त मांगो को चुनावी मुद्दा बनाया है, वही असफल प्रयास के बीच क्षेत्र की आवश्यकता, समस्या बनकर रह गई है।
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