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उर्दू जुबान इशारों और संकेतों से भी मुकम्मल

locationटोंकPublished: Feb 22, 2021 08:58:28 pm

Submitted by:

jalaluddin khan

उर्दू विषय पर डाला प्रकाशज्ञान गंगा कार्यक्रम शुरूटोंक. आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा एवं राजकीय महाविद्यालय टोंक के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालयी शिक्षकों में विषयदक्षता संवर्धन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘ज्ञान गंगाÓ सोमवार से शुरू हुआ।

उर्दू जुबान इशारों और संकेतों से भी मुकम्मल

उर्दू जुबान इशारों और संकेतों से भी मुकम्मल

उर्दू जुबान इशारों और संकेतों से भी मुकम्मल
उर्दू विषय पर डाला प्रकाश
ज्ञान गंगा कार्यक्रम शुरू
टोंक. आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा एवं राजकीय महाविद्यालय टोंक के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालयी शिक्षकों में विषयदक्षता संवर्धन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘ज्ञान गंगाÓ सोमवार से शुरू हुआ।
इसकी शुरआत सह संयोजक कारी डॉ. राशिद मियां ने तिलावते कलाम-ए-पाक से किया। इसके बाद उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम के मुख्य संयोजक डॉ. सादिक अली ने जानकारी प्रस्तुत की।

उद्घाटन सत्र में आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा से नवाचार प्रकोष्ठ कौशल के प्रतिनिधि डॉ. सी.बी.जैन तथा नवाचार प्रकोष्ठ के राज्य समन्वयक डॉ. विनोद भारद्वाज ने प्रशिक्षण कार्य की महत्ता, उपयोगिता एवं इसकी वर्तमान में बढ़ती आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. डॉ. सी.बी.जैन ने टोंक महाविद्यालय की ओर से आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता के लिए विभिन्न मार्गदर्शक सुझाव दिए।
डॉ. विनोद भारद्वाज ने महाविद्यालय शिक्षकों को इस प्रशिक्षण कार्यक्रम से विषय दक्षता संवर्धन के लिए प्रेरित किया। महाविद्यालय प्राचार्य अशोक कुमार सामरिया ने कार्यक्रम को सभी के लिए लाभदायी बताया।

उन्होंने टोंक की ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रवृत्तियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह शहर तथा महाविद्यालय श्रेष्ठ उपलब्धियों का केन्द्र है।
इस दृष्टि से उर्दू विभाग का योगदान सराहनीय है। प्रथम व्याख्यान सत्र में अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जियाउर्रहमान सिद्दीकी ने ‘उर्दू तदरीस के नए तरीकेÓ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो. सिद्दीकी ने बताया कि किसी भी जबान का जीवन में सर्वाधिक महत्व होता है। हमारी जबान न केवल आवाजों से बल्कि इशारों और संकेतों से भी मुकम्मल होती है।
उर्दू में यही खूबी है। इसीलिए भारत के हर राज्य में उर्दू के लेखक, शायर आदि पाए जाते हैं। डॉ. कजोड लाल बैरवा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।


दूसरे सत्र में प्रो. रऊफ खैर हैदराबाद, तेलंगाना ने ‘जदीद शैरी असनाफ की तदरीसÓ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

उन्होंने उर्दू साहित्य के व्यापक ऐतिहासिक क्षेत्र साहित्य के विस्तार और उसके विभिन्न रूपों की चर्चा की। उन्होंने टोंक की शायरी व मिसरों की चर्चा भी की।

बताया कि यहां की चारबेत शैली का विकास विश्व स्तरीय और अद्भुत है। यह शैली अरब व अफगान होते हुए यहां आई। अंत में समन्वयक डॉ. सादिक अली ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस दौरान संयुक्त सचिव कृष्णगोपाल मीना, मोहम्मद बाकिर हुसैन भी उपस्थित रहे।
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