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वेब सीरीज ‘फोन ए फ्रेंड’ पर नकल का आरोप, कहानी-चोरी की लम्बी दास्तान

locationमुंबईPublished: Apr 11, 2020 10:54:38 pm

सोशल मीडिया पर लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह हॉलीवुड की फिल्म ‘जेक्सी’ (2019) की नकल है। निर्देशक जॉन लुकास और स्कॉट मूरे की ‘जेक्सी’ में एक युवक की कहानी है, जो बचपन से मोबाइल का दीवाना है।

वेब सीरीज 'फोन ए फ्रेंड' पर नकल का आरोप, कहानी-चोरी की लम्बी दास्तान

वेब सीरीज ‘फोन ए फ्रेंड’ पर नकल का आरोप, कहानी-चोरी की लम्बी दास्तान

-दिनेश ठाकुर
भारतीय ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म जी 5 पर पिछले मंगलवार से शुरू हुई वेब सीरीज ‘फोन ए फ्रेंड’ विवाद से घिर गई है। सोशल मीडिया पर लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह हॉलीवुड की फिल्म ‘जेक्सी’ (2019) की नकल है। निर्देशक जॉन लुकास और स्कॉट मूरे की ‘जेक्सी’ में एक युवक की कहानी है, जो बचपन से मोबाइल का दीवाना है।

अचानक उसका मोबाइल बोलने लगता है और उसे अपनी जिंदगी बदली-बदली-सी महसूस होती है। ‘फोन ए फ्रेंड’ में भी यही किस्सा है। फर्क सिर्फ इतना है कि ‘जेक्सी’ के मोबाइल में लड़की की आवाज है और यहां लड़के की। कहीं-कहीं दीपिका पादुकोण और फरहान अख्तर की फिल्म ‘कार्तिक कॉलिंग कार्तिक’ के मसालों का भी छोंक लगाया गया है। निर्देशक एलिसन पटेल और यश दवे की ‘फोन ए फ्रेंड’ में अखलाक खान तथा स्वाति कपूर ने अहम किरदार अदा किए हैं। जहां तक कहानी या विचार की नकल की बात है तो बॉलीवुड के लिए यह कोई नया मसला नहीं है।

बॉलीवुड के बाबा आदम काल से फिल्मों पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं। इनमें कई बड़े फिल्मकारों की फिल्में शामिल हैं। बी.आर. चोपड़ा 70 के दशक में अमरीका से लेमोंट जॉनसन की ‘लिपस्टिक’ (1976) का वीडियो कैसेट लेकर आए और लेखक शब्द कुमार से इसके आधार पर भारतीय कहानी लिखवाई। इस पर उन्होंने ‘इंसाफ का तराजू’ (1980) बनाई। जब कहानी चोरी को लेकर अंगुलियां उठीं तो उन्होंने सफाई दी कि फिल्म में भारतीयता होनी चाहिए, दर्शक को इससे कोई मतलब नहीं होता कि कहानी देशी है या विलायती।

दिग्गज फिल्मकार ए.आर. करदार भी हॉलीवुड फिल्मों पर मोहित रहे। उन्होंने हॉलीवुड की ‘लव ऑफ कार्मेन’ (1948) की कहानी पर नलिनी जयवंत और सुरेश को लेकर ‘जादू’ (1951) बनाई तो कॉलंबिया पिक्चर्स ने उन पर मुकदमा दायर कर दिया। वे मुकदमा हारे और उनसे मुआवजा वसूल किया गया। इसी तरह जब हेमंत कुमार ‘रेबेका’ से प्रेरित होकर ‘कोहरा’ बना रहे थे, मूल फिल्म के निर्माताओं ने उन पर मुकदमा कर दिया। हेमंत कुमार को मुआवजा देकर समझौता करना पड़ा। एवीएम वाले इस मामले में खुशनसीब रहे कि ‘इट हेपेंड वन नाइट’ पर राज कपूर और नर्गिस को लेकर ‘चोरी-चोरी’ (1956) बनाने के बावजूद उनके खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी कहानी पर कई साल बाद महेश भट्ट ने ‘दिल है कि मानता नहीं’ बनाई। महेश भट्ट तो हॉलीवुड फिल्मों से कहानियों के साथ-साथ सीन भी कॉपी करते रहे हैं।

सत्तर और अस्सी के दशक में सलीम-जावेद ने कई हिट फिल्में लिखीं। यह जोड़ी भी हॉलीवुड फिल्मों से ‘प्रेरणा’ हासिल करती रही। मजेदारी देखिए कि हॉलीवुड की ‘डेथ राइड्स ए हॉर्स’ (1967) की थीम पर इस जोड़ी ने दो अलग-अलग फिल्मों की कहानियां लिखीं, दोनों फिल्में 1973 में आईं और दोनों हिट रहीं। इनमें से ‘जंजीर’ में नायक को अपने बाप की हत्या का बदला लेना है तो ‘यादों की बारात’ में यही काम तीन भाइयों को करना है। दोनों फिल्मों में खलनायक अजीत थे। ‘जंजीर’ में अमिताभ बच्चन को सपने में घोड़ा दिखता है तो ‘यादों की बारात’ में धर्मेंद्र को 9 नंबर का जूता। सलीम-जावेद ने ‘शोले’ भी दो हॉलीवुड फिल्मों ‘मैग्नीफिसेंट सेवेन’ (1960) और ‘द डर्टी डजन’ (1967) देखकर लिखी थी। वैसे यह दोनों फिल्में भी जापानी फिल्मकार अकीरा कुरोसावा की ‘सेवेन समुराई’ (1954) से प्रेरित थीं। यानी कहानियों की हेरा-फेरी के मामले में हॉलीवुड भी पाक-साफ नहीं है।

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