बार से बाहर निकलते ही बापूजी रास्ता भटक जाते हैं। तब उनका सामना कुछ कॉलेज के छात्रों से होता है, जो मदद करने के बदले उनके उनका फायदा उठाते हैं। वह छात्र बापूजी को ऐसा अहसास दिलाते है कि अगर वे उन्हें कुछ पैसे जुटाने में मदद करेंगे तो वह बदले में उन्हें सही सलामत घर पंहुचा देंगे। यह कहकर वह छात्र बापूजी के हाथ में एक तख्ती थमा देते हैं जिसमे मदद करने का सन्देश लिखा हुआ होता है। राहगीरों से पैसा इकट्ठा होने के बाद वह छात्र जमा किये हुए पैसे बापूजी को देने के बजाय खुद लेकर भाग जाते हैं। बेचारे बापूजी फिर से ठगे जाने के बाद मदद मांगना शुरू करते हैं।
तब एक और व्यक्ति उन्हें देखता है और बापूजी के समीप जाकर उन्हें बताता है कि उसे पता है कि गोकुलधाम सोसाइटी कहां है और उन्हें बस में जाने की सलाह भी देता है। और कोई विकल्प नहीं होने के कारण बापूजी बस में चढ़ जाते हैं। अब देखना यह होगा कि क्या वह बस बापूजी को सही दिशा में ले जा रही है या बापूजी फिर कोई मुसीबत में फसने वाले है?
गौरतलब है कि इससे पहले एक चोर ने बापूजी को सखाराम (स्कूटर) के साथ चुरा लिया और सड़क पर पुलिस की नाकाबंदी देखकर उन्हें बिच सड़क पर ही छोड़ कर चला गया। चोर के चुंगल से निकलने के बाद बेचारे बापूजी अकेले बेसहारा बिच सड़क पर खड़े होते है, तभी उनके एक व्यक्ति मिलता है जो शराब पिया हुआ है और बापूजी को अपने साथ लेकर ‘भिड़े बार’ नामक शराबखाने में लेकर चला जाता है। आखिरकार शराब सूंघने से उनको पता चलता है कि वह बार में बैठे हैं।
जहां एक तरफ बापूजी गली- गली भटक रहे हैं वहीं दूसरी तरफ जेठालाल ( jetha lal ) को पता चलता है कि बापूजी गायब हो गए तो वह सोसायटी वालों के साथ इंस्पेक्टर चालू पांडे के पास थाने में पहुंच जाते हैं।