राजस्थान पत्रिका ने इन बच्चों, शिशुगृह की हालत और व्यवस्थाओं पर नजर डाली। सामने आया कि भले ही शिशु गृह का स्टाफ अपनी तरफ से बच्चों को भरपूर प्यार दे रहा है, लेकिन इनके प्रयास नाकाफी हैं। असल में इतने सारे बच्चों की एक साथ देखभाल उपलब्ध स्टाफ के लिए संभव नहीं है। शिशुगृह में महज 10 बच्चों को रखने की स्वीकृति है। इसके अनुसार ही तीन शिफ्ट में 6 आया नियुक्त की गई हैं। राउंड दी क्लॉक हर शिफ्ट में दो आया लगी रहती हैं। दूसरी ओर शिशुगृह में पूरे संभाग से काफी बच्चे आ रहे हैं। साल 2017 में 28 बच्चे शिशु गृह पहुंचे हैं। बता दें कि ये वे बच्चे हैं जिन्हें ना तो मां का प्यार मिला और न ही पिता का साया। नियति ने जन्म लेते ही ऐसी सजा दे डाली कि इन जज्बात से अनजान ये बच्चे अपने जैसे ही दूसरे अनाथ बच्चों के साथ पल और बढ़ रहे हैं। किसी की तकदीर चेती तो मां-बाप, परिवार से फिर जुड़ गए, लेकिन आज भी कई बच्चे इस नेमत को तरस रहे हैं। गौरतलब है, जहां-तहां मिलने वाले नवजात को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश करना होता है, जहां से ये बच्चे राजकीय शिशुगृह में भेजे जाते हैं। समिति अध्यक्ष व सदस्य भी हैरान हैं कि लगातार आ रहे नवजातों को कहां रखा जाए।
एक्सपर्ट बोले- ऐसे तो कन्फ्यूज रह सकता है बच्चा
शिशु गृह में स्टाफ की कमी के चलते व्यवस्थागत चुनौतियां तो पेश आ रही हैं, बच्चों पर भी मनोवैज्ञानिक रूप से गलत प्रभाव पड़ रहा है। मां के आंचल से दूर ये नौनिहाल दिनभर में तीन यशोदाओं के पास रहते हैं। हर आठ घंटे में इनकी देखभाल दूसरे हाथों में होती है। सवाल पर एमबी अस्पताल में मनो चिकित्सा विभाग अध्यक्ष डॉ. सुशील खेराड़ा ने माना कि एक ही मां का अटैचमेंट न मिले, तो निश्चित रूप से बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर असर पड़ता है। यदि दिनभर में तीन महिलाएं बच्चे को संभाल रही हैं तो बच्चा कन्फ्यूज रह सकता है। उसके बेहतर विकास के लिए एक मां का प्यार मिलना जरूरी है। बच्चा दिन-रात एक ही मां या महिला को देखता है, वही उसके विकास का मुख्य कारण बनता है। क्योंकि इसी से भावनात्मक जुड़ाव बनता है।
सुखद पहलू : 17 को मिला परिवार का प्यार
विपरीत परिस्थितियों के बीच शिशु गृह का एक सुखद पहलू यह रहा कि 28 में 17 को परिवार मिल गया। बताया गया कि 13 को दत्तक ग्रहण के जरिए मां-बाप मिल गए, जबकि दो पालन पोषण (फॉस्टर केयर) के तहत परिवार में पहुंचे। बाल तस्करी से छुड़ाया गया एक बच्चा मुंबई सीडब्ल्यूसी को सौंपा गया, जबकि दो उन्हें अभिभावकों को सौंपे गए, जिन्होंने इन्हें छोड़ा था। अभी शिशुगृह में पल रहे 10 बच्चों के लिए भी ऑनलाइन प्रकिया चल रही है।
शिशुगृह में 10 की स्वीकृत संख्या है और लगातार संभाग से बच्चे आ रहे है। ऐसे स्थिति में स्वीकृत संख्या के मुकाबले देखभाल के लिए हमारे पास तीन शिफ्ट में तीन आया है जो ज्यादा बच्चों के लिए नाकाफी है। स्वीकृत संख्या व स्टाफ बढ़ाया जाना चाहिए।
वीना मेहरचंदानी, अधीक्षक, राजकीय शिशुगृह