कभी वन विभाग भी लगाता था बबूल करीब 40 साल पूर्व जब यह विलायती बबूल प्रदेश में आया तो वन विभाग ने भी इसे लगाया था, लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया। आज स्थिति यह है कि इसकी फलियां जानवर खाते हैं, जिससे बीज एक जगह से दूसरे जगह पर गए और यह फैलता चला गया। पड़त और बंजर जमीन पर यह तेजी से फैल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में कांटेदार होने के बावजूद पहले इसे काटकर लकडिय़ां जलाने के काम मे ली जाती थी तो यह ज्यादा पनप नहीं पाया। बाद में जब से गैस चूल्हे का उपयोग बढ़ा इसे लोगों ने काटना कम कर दिया और अब इसके फैलाव में तेजी आ गई है।
पर्यावरण समिति भी चिंतित.. पिछले दिनों उदयपुर आई विधानसभा की पर्यावरण समिति के समक्ष मावली विधायक धर्मनारायण जोशी ने विलायती बबूल से हो रहे नुकसान की बात उठाई। इस पर समिति ने गंभीरता दिखाई थी। प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि विलायती बबूल को ग्राम पंचायत स्तर पर नरेगा जैसे कार्यों में लेकर हटाया जा सकता है, लेकिन इसे जड़ से निकालने में मशीनरी का उपयोग करना पड़ेगा। पौधरोपण करने वाले कॉर्पोरेट्स घरानों से भी इस दिशा में काम करने को कहा गया है और दूसरे पौधे इस जगह लगाने के सुझाव दिए गए थे।
इनका कहना…. विलायती बबूल से सैकड़ो बीघा चरागाह जमीनों पर घास खत्म हो गई है। इससे दूसरे पौधे नहीं पनप पा रहे हैं। समय रहते इसे रोकने के प्रयास नहीं हुए तो कांटो का यह जंगल जमीनों को बंजर कर देगा। इसके लिए पंचायतें अभियान चलाकर इसे जड़ सहित निकाले तो काम बनेगा।
धर्मनारायण जोशी, मावली विधायक
डॉ. सतीश शर्मा,पर्यावरणविद