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थावरी के द्वार पहुंचा प्रशासन

locationउदयपुरPublished: Jan 06, 2019 02:19:17 am

Submitted by:

Pankaj

विधवा पेंशन सहित अन्य योजनाओं में जुड़ेगा नाम, बाल कल्याण समिति ने लिया प्रसंज्ञान, थावरी बोली- पहले मिल जाती मदद

Administration reached the victim family

थावरी के द्वार पहुंचा प्रशासन

कपिल सोनी. गोगुंदा . आठ बच्चों के साथ फाकाकशी की जिंदगी जी रही सिवडिय़ा निवासी थावरी के घर शनिवार को आखिर प्रशासनिक अमला पहुंचा। प्रशासनिक प्रतिनिधियों ने थावरी को विधवा पेंशन, बच्चों को पालनहार योजना, पन्नाधाय जीवन अमृत योजना में लाभ पहुंचाने के लिए नामांकित किया। इसके अलावा भी कई संस्थाओं की ओर से व्यक्तिगत मदद के लिए संपर्क किया गया है।
गौरतलब है कि सिवडिय़ा निवासी खदान श्रमिक की बीमारी के बाद मौत हो गई थी। ऐसे में आठ बच्चों की जिम्मेदारी लिए दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त श्रमिक की पत्नी थावरी के जिम्मे आ गया। थावरी की करुण कहानी को राजस्थान पत्रिका ने शनिवार के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया। ‘आठ बच्चों का जिम्मा, फाकाकशी और पहाड़ सी जिंदगीÓ शीर्षक से प्रकाशित खबर से परिवार की दयनीय स्थिति और थावरी की पीड़ा को उजागर किया। आखिर शनिवार को सामाजिक अधिकारिकता विभाग से सामाजिक सुरक्षा अधिकारी प्रवीण पानेरी सुध लेने पहुंचे। थावरी को विधवा पेंशन, तीन बच्चों के लिए पालनहार योजना और व्यक्तिगत लाभ के लिए पन्नाधाय जीवन अमृत योजना का लाभ दिलाने के लिए दस्तावेज लेकर नामांकित किया।
सरकार उठाएगी जिम्मेदारी
मामले में बाल कल्याण समिति ने संज्ञान लेते हुए आपात बैठक की, जिसमें डॉ. प्रिती जैन, बीके गुप्ता, डॉ. राजकुमारी भार्गव, सुशील दशोरा, हरिश पालीवाल मौजुद रहे। समिति ने गोगुंदा थानाधिकारी भरत योगी को सीवीपीओ सहित टीम को भेज पीडि़ता परिवार की रिपोर्ट मांगी। सदस्य बीके गुप्ता ने बताया कि बच्चों को बाल कल्याण समिति भी गोद ले सकती है। ऐसे में 18 वर्ष तक उनकी शिक्षा, भरण पोषण का जिम्मा लिया जाएगा। इसके लिए थावरी से समझाइश की जा रही है।
आगे आए जिम्मेदार
तहसीलदार विमलेन्द्रसिंह राणावत ने सभी योजनाओं का लाभ शीघ्र ही दिलाने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया। उन्होंने व्यक्तिगत सहित संस्था की ओर से भी परिवार को सहायता दिलाने का भरोसा दिलाया है। सरपंच अणसीदेवी गमेती सहित वार्डपंच भी थावरी से मिलने पहुंचे।
चिकित्सा और श्रम विभाग की चूक

मृतक मोहन ने 6 माह पूर्व 4 जून को स्वाथ्य विभाग में सिलिकोसिस की जांच के लिए ऑनलाइन आवेदन किया, लेकिन जांच के लिए कोई नहीं आया। श्रमिक विभाग में 1 अक्टूबर को हितार्थ डायरी के लिए आवेदन दिया, उसका भी लाभ नहीं मिला। मोहन के गंभीर बीमार होने पर पत्नी ने इलाज के लिए कर्जा लिया, लेकिन 17 नंवबर को मोहन का निधन हो गया।
समाजिक कार्यकर्ता रूपाराम गरासिया ने बताया कि मोहन के स्वास्थ्य परिक्षण को लेकर ऑनलाइन आवेदन किया था, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली। सिलिकोसिस पीडि़त का प्रमाण पत्र बन जाता तो जीवित रहते ही मोहन को 1 लाख की सहायता राशि मिल जाती। मौत के बाद परिवार को दो लाख की सहायता राशि मिलती। श्रमिक विभाग में आवेदन पर भी हितार्थ डायरी नहीं बनी। डायरी के अभाव में सहायता राशि भी नहीं मिली। नियमानुसार सिलिकोसिस से पीडि़त होने की अस्पताल रिपोर्ट आने पर सरकारी लाभ के लिए आवेदन किया जाता है। किसी रोगी के अस्पताल पहुंचने में असक्षम होने पर चिकित्सा विभाग की टीम घर जाकर जांच करती है। दूसरी ओर श्रम विभाग भी रोगी को लाभ के लिए नामांकित करता है। चिकित्सा और श्रम विभाग की लापरवाही की वजह से मोहन को सिलिकोसिस पीडि़त का दर्जा नहीं मिल पाया।
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