उदयपुरPublished: Aug 27, 2023 07:21:59 pm
Madhusudan Sharma
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकीविश्वविद्यालय उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कर्नाटक ने कहा कि खाद्यान्न् क्षेत्र में अनवरत शोध और अनुसंधान का ही सुपरिणाम है कि आज हमारा देश आत्मनिर्भर है। वरना एक समय था जब देशवासी बाहर से आयातित लाल गेहूं का बेसब्री इंतजार करते थे।
उदयपुर. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकीविश्वविद्यालय उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कर्नाटक ने कहा कि खाद्यान्न् क्षेत्र में अनवरत शोध और अनुसंधान का ही सुपरिणाम है कि आज हमारा देश आत्मनिर्भर है। वरना एक समय था जब देशवासी बाहर से आयातित लाल गेहूं का बेसब्री इंतजार करते थे। कर्नाटक रविवार को अनुसंधान निदेशालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में ये जानकारी दे रहे थे। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत की और इस वर्ष भारत में गेहूं का रिकोर्ड 112 मिलीयन टन उत्पादन हुआ है। उन्होंने कहा कि अब चुनौती इस बात की है कि बदलते मौसम चक्र में गेहूं के उत्पादन को बरकरार रखना, क्योंकि गेहूं में दाना बनते समय अचानक तापमान वृदि्ध से न केवल दाना सिकुड़ जाता है बल्कि उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साथ ही देश-दुनिया के वैज्ञानिक अब इस दिशा में जुटे हैं कि अब कम अवधि मेें पकने वाली गेहूं और जौ की किस्में तैयार हो। गेहूं में मौजूद ग्लूटेन के साथ-साथ आयरन व जिंक जैसे प्रोटीन की उपलब्धता भरपूर हो। साथ ही गेहूं एक संपूर्ण आहार के रूप में प्रचलित हो सके। बदलते मौसम चक्र में गेहूं की किस्में डी. बी. डबल्यू. 327, 303 व 187 काफी कारगर है। साथ ही राजस्थान के लिए राज- 4037, राज- 4079 और राज- 4238 किस्में काफी उपयुक्त है। इसके अलावा जौ उत्पादन में भी कृषि वैज्ञानिकों ने सार्थक परिणाम दिए हैं। क्योंकि एल्कोहाल इण्डस्ट्री में इसकी काफी मांग रहती है और किसानोंको अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है।