कई मर्तबा लोग आते हैं… सम्मान करते हैं… कार्यक्रमों में बुलाते भी
हैं… मलाल ये कि इनसे मुश्किलें कम नहीं हुई। शहीद की एक मात्र वंशज हूं,
फिर भी सेना केंटीन का कार्ड तक नहीं। घर टूटा पड़ा है। फक्र है कि देवर
रफीक खां ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए। लेकिन परिस्थितियां कई बार रुला देती है
जयपुर•Jan 23, 2016 / 12:32 pm•
Nikhil swami