हरि कथा के साथ अर्जुनलाल ने 41 साल में श्रीमद् भगवत गीता, स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, वाल्मीकि रामायण, हरिवंश पुराण का पाठ कर चुके हैं। विक्रम संवत 1997 में जन्मे 80 वर्षीय अर्जुनलाल बचपन से ही आध्यात्मिक विचारधारा से जुड़े रहे हैं। जब उन्होंने पहली बार कथावाचन किया, वे 39 वर्ष के थे। उस समय शुरू हुआ कथावाचन का सिलसिला उम्र 80 वर्ष होने तक भी जारी है।
नहीं पड़ी चश्मे की जरुरत
कथावाचक अर्जुन लाल पेशे से कथावाचक नहीं, बल्कि किसान हैं। वे श्रद्धा वश कथावाचन करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी अर्जुनलाल को चश्मे की जरुरत नहीं पड़ी। वे बिना किसी रुकावट के कथावाचन करते हैं।
मंदिर से जुड़ाव की सोच
कथावाचक अर्जुन लाल पेशे से कथावाचक नहीं, बल्कि किसान हैं। वे श्रद्धा वश कथावाचन करते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी अर्जुनलाल को चश्मे की जरुरत नहीं पड़ी। वे बिना किसी रुकावट के कथावाचन करते हैं।
मंदिर से जुड़ाव की सोच
कथावाचक अर्जुनलाल बताते हैं कि दो जलाशयों के बीच पहाड़ी पर स्थित ठाकुरजी मन्दिर अतिप्राचीन है। मंदिर के प्रति आस्था और जुड़ाव बनाए रखने के लिए वे निरंतर कथावाचन करते हैं। बताया गया कि निर्माण की नींव सन् 1325 में रखी गई, जो 97 साल बाद वर्ष 1425 मे पूरा हुआ था। मन्दिर का निर्माण राणा लखा के समय पूर्ण हुआ। मंदिर की ध्वजा चढ़ाई का उल्लेख सूरह लेख पर मिलता है, जिसमें सन् 1596 मे महाराणा प्रताप के समय ध्वजा चढ़ाने का उल्लेख मेवाड़ी में लिखे जर्जर अभिलेख पर मिलता है।