नन्हे टॉम की वजह से थाना परिसर का माहौल बदल गया है। अपराधियों के लिए बनी बैरक हो या फिर थानाधिकारी की टेबल…टॉम सभी जगह बेहिचक होकर घूमता-फिरता है। थाने का स्टाफ भी खाली समय में टॉम के साथ अठखेलियां कर उसकी मां की कमी को दूर करने का प्रयास करता है। सभी पुलिसकर्मी टॉम के खाने-पीने का विशेष ख्याल रखते हैं। इन सभी का बिल्ली के इस नन्हे बच्चे से इतना लगाव हो गया है कि जब वह कुछ देर के लिए आंखों से ओझल हो जाता है तो पूरा थाना उसे ढूंढने में लग जाता है। थाने में भी लोग लड़ते-झगड़ते आते हैं और जब नन्हे टॉम के साथ पुलिसकर्मियों को खेलते देखते हैं तो एक जानवर के प्रति पुलिसकर्मियों के इस प्रेम देख कर हर कोई द्वेषता भूल जाता है।
दरअसल, हिरणमगरी थाने में टॉम नाम का बिल्ली का एक बच्चा है। टॉम की कहानी दर्दभरी है। टॉम जब महज पांच दिन का था, तभी उसकी मां इस दुनिया से चल बसी। नन्हा टॉम कुछ श्वानों का शिकार बनने वाला ही था, तभी थाने में तैनात कांस्टेबल राकेश विश्नोई की नजर इस पर पड़ गई। विश्नोई ने पुलिस लाइन परिसर में टॉम को श्वानों से बचाते हुए अपने घर में रखा। जब टॉम 10 दिन का हो गया, तब राकेश उसे हिरणमगरी थाने में ले आया। उसके बाद से ही टॉम हिरणमगरी थाने के सभी पुलिसकर्मियों का चहेता बन गया है। थाना अधिकारी हनुवंतसिंह राजपुरोहित ने बिल्ली के इस बच्चे का नामकरण टॉम किया है। थानाधिकारी खुद हों या थाने में कार्यरत अन्य स्टाफ सभी थाने में घुसते ही एक माह के मासूम टॉम की खबर सबसे पहले लेते हैं।