सगाई के एक साल के भीतर ही गत 2 मई को लडक़ी की तबीयत अचानक बिगड़ गई और उसने घर पर ही एक सतमासी शिशु को जन्म दिया। बच्चा काफी कमजोर व उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं होने से अगले ही दिन नाना-नानी ने उसे बाल चिकित्सालय की बाल नर्सरी में भर्ती करवाया। मासूम का वजन उस समय महज 1 किलो 600 ग्राम था। दो-तीन दिन तीमारदारी कर नाना-नानी भी उसे लावारिस छोड़ चले गए। चिकित्सकीय दल परिजनों के अभाव में बच्चे की देखभाल कर उसे बचाने में लगा रहा। बच्चे का वजन बढऩे के साथ ही जब वह स्वस्थ हुआ तो चिकित्सकों ने 20 जून को इसकी जानकारी बाल कल्याण समिति (सीडब्लयूसी) को दी। समिति के आदेश पर उन्होंने पुलिस को भी रिपोर्ट दी। बच्चे के भर्ती टिकट पर लिखे उसके नाना-नानी के नाम व मोबाइल नम्बर भी उपलब्ध करवाए लेकिन पुलिस ने कोई मदद नहीं की। इस बीच चिकित्सालय स्टाफ ने परिजनों का पता लगाकर उन्हें अस्पताल बुलवाया।
जैविक माता-पिता की ओर से किया गया बालक का ऐसा परित्याग, जान-बूझकर किया गया परित्याग नहीं है। किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 के तहत ऐसे में दांडिक प्रावधान लागू नहीं होगा।
बी.के.गुप्ता, सीडब्ल्यूसी सदस्य
शिशु के जन्मते ही दोनों परिवारों के मध्य रिश्तों में खटास आ गई और वर पक्ष ने सगाई तोड़ दी। उन्होंने लडक़ी पर छींटाकशी के साथ ही कई तरह के इल्जाम भी लगाए तो उसने भी सीने पर पत्थर रखकर बच्चे से मोह त्याग दिया। नाना-नानी ने सामाजिक बंधनों के चलते उसे साथ रखने में असमर्थता जता दी। काउंसलिंग कर उन्हें बाल कल्याण समिति (सीडब्लयूसी) के पास भेजा गया। समिति अध्यक्ष डॉ.प्रीति जैन, सदस्य बी.के.गुप्ता, हरीश पालीवाल व सुशील दशोरा ने नाना-नानी को बच्चे के जैविक मां के साथ उपस्थिति के आदेश दिए। शुक्रवार को पेश हुई मां ने शिशु को रखने की असमर्थता का लिखित बयान देकर बच्चा समिति को सुपुर्द कर दिया। समिति ने मां के बयान लेने के साथ ही बच्चे को राजकीय शिशुगृह में रखवाया। बच्चा पूर्णतया स्वस्थ है।