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उदयपुर

स्वागत तो कीजिए.. आ गया बसंत.. जान‍िए देश भर में कहां-कैसे मनाया जाता है ये पर्व

– बसंत पंचमी , देश-विदेश में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है बसंत पंचमी का पर्व

उदयपुरJan 29, 2020 / 01:52 pm

madhulika singh

basant panchami

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उदयपुर. ‘सरसों खेतों में उठी फूल, बौरें आमों में उठी झूल, बेलों में फूले नए फूल, पल में पतझड़ का हुआ अंत, आया वसंत, आया वसंत…’ कवि सोहनलाल द्विवेदी ने बसंत की खूबसूरती इन पंक्तियों में बखूबी बयां की है। बसंत यानी प्रेम, उल्लास और उमंग का माहौल। बसंत के आने पर ना केवल प्रकृति बल्कि हर व्यक्ति इस के रंग में सराबोर दिखता है। माघ माह की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन से शरद ऋतु की विदाई और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। बसंत को यूं ही ऋतुओं का राजा नहीं कहा जाता। ये मौसम का यौवन काल है। जिस तरह यौवन मनुष्य के जीवन में बसंत काल है, उसी तरह बसंत प्रकृति का यौवनकाल है। इस समय प्रकृति अपने अप्रतिम सौन्दर्य को लेकर इठलाती है। इसके आने से सर्दी की विदाई और गर्मी के आने की आहट सुनाई देने लगती है।

फागोत्सव होगा शुरू

बसंत पंचमी से फागोत्सव की शुरुआत हो जाती है। मंदिरों में भगवान को पीत वस्त्र धारण कराए जाते हैं वहीं चंग की थाप पर फाग गीत शुरू हो जाते हैं। अबीर और गुलाल उडऩे लगता है। यह क्रम होली तक जारी रहेगा। इसके अलावा विवाह मुहूर्त के अलावा गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों के लिए भी ये दिन श्रेष्ठ माना जाता है। ऐसे में इस दिन खूब विवाह होते हैं।

पीले रंग का महत्व

सूर्य के उतरायण में आने के बाद का समय बृहस्पति देव का होता है। इस काल के गुरू भी बृहस्पति हैं और पीला उनका प्रिय रंग है। बृहस्पति देव को खुश करने के लिए लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। बसंत के मौसम में पीले रंग का बहुत ज्यादा महत्व है। मौसम के अनुसार देखें या धर्म के अनुसार पीले रंग को प्राथमिकता दी गई है। इस मौसम में गेंदे के फूल व केसर की क्यारियां महक उठती हैं। खेतों में सरसों अपने पूरे यौवन पर आ जाती है। हिन्दू धर्म में पीला रंग प्रेम और अनुराग का प्रतीक बताया गया है। पीला रंग कृष्ण को भी प्रिय था इसलिए उन्हें पीताम्बर धारण कराया जाता है।
इन देशों में भी मनाया जाता है
यह पूजा भारत, पश्चिमोत्तर, बांग्लादेश, नेपाल तथा कई अन्य राष्ट्रों में भी बड़े उल्लास के साथ की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि बसंत का त्योहार चीनी लोगों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। सैकड़ों वर्ष पूर्व चीन में बसंत को नियन कहा जाता था। वहीं उस समय नियन का अर्थ भरपूर फसल वाला साल था। हमारे यहां हर त्योहार की कुछ बेहद अनूठी परंपराएं हैं। बसंत पंचमी के दिन शिशुओं को पहला अक्षर सिखाया जाता है। सरस्वती पूजन के दौरान कॉपी, किताब तथा पेंसिल-पेन का स्पर्श कराया जाता है। भारतीय संगीत, साहित्य और कला में बसंतु ऋतु का महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग बसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं।
राज्यों में ऐसे मनता है वसंतोत्सव

1. राजस्थान और उत्तर प्रदेश इन दो प्रदेशों में बसंत पंचमी को देवी सरस्वती को अधिक महत्व दिया जाता है। इन दिन यहां के स्कूलों में बच्चों के लिए कॉम्पिटिशन आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा इस दिन इन देशों के लोग रंग-बिरंगे या पीले कपड़े पहन कर अपनी खुशी आयोजित करते है।
2. बिहार: यहां के लोग इस दिन स्नान करके पीले कपड़े पहन कर माथे पर हल्दी लगाते हैं। इसके बाद यहां के लोग देवी की पूजा अपने उसत्व को मनाते हैं। ढोल नगाड़ों के साथ बसंत पंचमी का सेलिब्रेशन किया जाता है। यहां बसंत पंचमी पर केसर डालकर खीर, मालपुआ और बेसन की बंूदियां तल कर निकाली जाती हैं।
3. उत्तरकाशी हिमालय: उत्तरकाशी प्रदेश में इस दिन लोग घर के दरवाजे के बाहर पीले रंग के फूल उगाते हैं। साथ ही वो पीले कपड़े और पीली मिठाइयों के साथ इस दिन को सेलिब्रेट करते हैं।
4. पंजाब और हरियाणा: बसंत पंचमी पर पंतग उड़ाई जाती है। इस दिन महिलाएं लोक गीत पर डांस करती है और सिख गुरुद्वारों में सार्वजनिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं। पंजाब में मक्के की रोटी के साथ सरसों का साग और मीठे चावल भी इस दिन विशेष तौर पर बनाए जाते हैं।
5. बंगाल ललित कलाओं के साथ-साथ बंगाल को दुर्गा और बसंत पंचमी फेस्टिवल के लिए भी जाता है। यहां पर बड़े-बड़े पंडाल लगाकर मूर्ति पूजा के साथ प्रसाद बांटा जाता है। इसके अलावा यहां लोक गीत और नृत्य समारोह भी होते हैं। सरस्वती पूजा के दिन बंगाल में प्रसाद के तौर पर बूंदी के लड्डू बांटे जाते हैं। खिचड़ी बनाई जाती है। पूजा में रखी जाती है और प्रसाद के रूप में खिलाई जाती है। केसरी राजभोग बनाया जाता है जो छेने की तरह ही बनता है लेकिन इसकी चाशनी बनाते समय इसमें केसर मिला दिया जाता है।
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