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कोरोना संक्रमण के लिए चमगादड़ जिम्मेदार नहीं, देश के इस पक्षी विज्ञानी ने शोध के आधार पर किया दावा

locationउदयपुरPublished: May 08, 2020 03:50:15 pm

Submitted by:

madhulika singh

वर्तमान कोरोना वायरस मानव द्वारा प्रयोगशाला में तैयार करके सीधे ही मनुष्य में प्रवेश का माध्यम दिया गया अर्थात यह संक्रमण मानवीय कृत्यों का परिणााम है न कि कोई प्राकृतिक आपदा का

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उदयपुर. कोरोना वायरस के मनुष्यों में संक्रमण के लिए चमगादड़ या अन्य वन्यजीव को जिम्मेदार मानना सही नहीं है। ये दावा किया है देश के ख्यातनाम पक्षी विज्ञानी एवं राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, राजस्थान के संस्थापक व सीईओ डॉ. एस.पी.मेहरा ने। कोविड-19 के वन्यजीवों के साथ संबंधों व प्रकृति आधारित हस्तक्षेप विषय पर डॉ. सरिता मेहरा के साथ किए गए अपने शोध समीक्षा में कोरोना वायरस के विभिन्न प्रकारों और इसके मानव पर प्रभावों का समीक्षात्मक विश्लेषण करते हुए बताया है कि वन्यजीवों को जिम्मेदार मानकर मनुष्य अपनी भूलों पर पर्दा डाल रहा है।

संक्रमण मानवीय कृत्यों का परिणाम

डॉ. मेहरा नेे विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में उद्घाटित तथ्यों पर बताया है कि वर्तमान कोरोना वायरस मानव द्वारा प्रयोगशाला में तैयार करके सीधे ही मनुष्य में प्रवेश का माध्यम दिया गया अर्थात यह संक्रमण मानवीय कृत्यों का परिणााम है न कि कोई प्राकृतिक आपदा का। उन्होंने बताया कि वन्यप्राणी तो इस वायरस को अपने भीतर रखते हुए उसे फैलने से रोकते हैं। वन्यप्राणियों के किसी भी प्रकार से मनुष्य के सीधे संपर्क में आने पर भी इस वायरस की आक्रामकता नहीं होती क्योंकि यह वन्यप्राणी से सीधे मनुष्य में पहुंच ही नहीं सकता। इस स्थिति में चमगादड़ को कोरोना वायरस संक्रमण के लिए खलनायक के रूप में प्रदर्शित करना मनुष्य द्वारा स्वयं की चूक पर पर्दा डालने जैसा ही है।
हर जीव में वायरस का भंडार
डॉ. मेहरा ने बताया कि मनुष्य में संक्रमण फैलाने हेतु विषाणु कभी भी वन्यजीव से सीधे नहीं आता। इसे कई चक्रों के माध्यम से गुजरना पड़ता है तब वह मनुष्य तक प्राकृतिक रूप से पहुंचता है। उन्होंने बताया कि इनमें से कुछ विषाणु लाभदायक है तो कुछ हानिकारक भी। हानिकारक विषाणु या जीवाणुओं के लिए प्रकृति ने पोषण हेतु संसाधनों की भरमार कर रखी है, इसीलिए इनका सीधे ही मनुष्य में प्रवेश पाना अत्यंत कठिन होता है। जब तक कि हानिकारक विषाणु या जीवाणुओं के संसाधन को मनुष्य नहीं छेड़ता अथवा समाप्त करता है तब तक इन संक्रमणों का मनुष्य में प्रवेश पाना संभव नहीं है। यह प्रकृति का नियम है।
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