राजस्थान आदिवासी संघ की गुरुवार को नांदेश्वर उपशाखा की आयोजित बैठक में यह निर्णय किया गया। बैठक में जिलाध्यक्ष धनराज अहारी, मठ अध्यक्ष देवीलाल भगोरा, सचिव मगनलाल मीणा सहित 27 गांवों के लोग, पंच, सरपंच, मुखिया आदि मौजूद थे। बैठक में सबने गवरी, शादी, नवरात्र, गंगोज पर आने वाली समस्त तरह की पेहरावणी व लडडू पर रोक लगा दी। समाज ने इस रस्म के अदायगी के लिए लिफाफे भराने पर निर्णय लिया, जिसमें अपनी श्रद्धानुसार कोई भी कितने भी राशि रख सकेगा। इस सामाजिक अवसर पर शराब पीने व पिलाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। नियमों का उल्लघंन करने पर समाज स्तर पर दंड का निर्णय लिया गया है।
यहां एक माह से जारी है गवरी की धूम, गांवों के साथ शहरों में भी खींच रही भीड़ स्वांग रचकर देते हैं सामाजिक संदेश गवरी भगवान शिव-पार्वती की आराधना का लोकनृत्य है। ठंडी राखी से इसकी शुरुआत होती है, जो 40 दिन तक अलग-अलग गांवों में रमी जाती है। इसमें भील समुदाय के लोग छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से विभिन्न स्वांग रचते हुए सामाजिक संदेश देते हैं। आसोज की नवमीं से इसका समापन शुरू होता है। इसमें जो गांव गवरी लेता है, वहां पहले गोरज्या माता मंदिर जाकर अनुमति के बाद इसे रमा जाता है।
ये है मेवाड़ की एवरग्रीन फिल्म गवरी, कास्टिंग, मेकअप, ड्रेस से लेकर एक्टिंग तक है दिल जीतने वाली मेवाड़ में कुल 50 गवरी मेवाड़ में आदिवासियों की कुल 50 गवरी है। नांदेश्वर मठ की आठ गवरियां हैं। इनमें पई, कुम्हारियाखेड़, पीपलवास, छोटी उंदरी, पिपलिया, कोडि़यात, राताखेत व करनाली शामिल हैं। इन आठों गांव के ग्रामीण अलग-अलग गांवों में गवरी रमते हैं। विसर्जन के दौरान बहन-बेटियां परिवार के लिए पेहरावणी स्वरूप कपड़े व लड्डू लेकर आती हैं। इस पर करीब पांच से आठ हजार का खर्च आता है।