opium farming news : परवान पर काले सोने की खेती
अफीम में दिखने लगे डोडे, पूजा अर्चना के बाद लुवाई का कार्य शूरू, करीब 250 पट्टेधारी किसान क्षेत्र में
उदयपुर
Published: February 21, 2022 05:45:40 pm
उदयपुर जिले के लूणदा कस्बे सहित आसपास के क्षेत्र में काला सोना के नाम से मशहूर अफीम की फसल इन दिनों परवान पर है। किसानों ने शुभ मुहूर्त में माताजी का पूजन कर अफीम फसल पर चीरा लगाने व लुवाई (रस एकत्र करने) का कार्य शुरू कर दिया है तो कुछ किसानों के लुवाई के कार्य में देरी बनी हुई है। लूणदा सहित अमरपुरा जागीर, धाकडों का खेडा, संग्रामपुरा, मालनवास आदि गांवों में करीब 250 से अधिक अफीम पट्टाधारी किसान अफीम की खेती करते है।
डोडो से निकलता है काला सोना : अनुज्ञापत्र मिलने के बाद अमूमन 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक इसकी बुवाई की जाती है। लेकिन इस बार कई जगह पर देरी से बुवाई की गई एवं जबकि गई जगह डोडो से दूध निकलना शुरू हो गया है। जनवरी के अंत एव फरवरी माह के शुरुआत में यह फसल पूर्ण यौवन पर रहती है, सफेद फूलों के बाद डोडियों से पौधे लद जाते हैं। फरवरी के द्वितीय सप्ताह से लेकर मार्च प्रथम व दूसरे सप्ताह तक इसमें चीरा लगाने का काम शुरू होता है। डोडे में लगे चीरे से जो दूध निकलता है वही अफीम कहलाता है। बुवाई होने के बाद से चीरा लगने एवं तुलाई नहीं होने तक किसानों की कड़ी मेहनत होती है। डोड़े तैयार होने के बाद विशेष औजार के द्वारा इनको चीरा लगाकर उससे निकलने वाले दूध को भी विशेष तरीके से एकत्रित किया जाता है। यही एकत्रित दूध काला सोना अफीम कहलाती है जो कि एक निर्धारित मात्रा में इकठी् कर नारकोटिक्स विभाग को तुलवाई जाती है।
अफीम से जुडे रोचक तथ्य
अफीम एक पौधा होता है। इस पौधे में डोडा लगता है। डोडा में चीरा लगाकर दूध निकालते हैं। इसी दूध को सुखाते है जो कि अफीम बनती है।
अफीम को स्थानीय भाषा में अमल कहते है। इसको नारकोटिक्स विभाग खरीदता है एवं इसका उपयोग दवाइयां बनाने में किया जाता है।
अफीम खेती के लिए सरकार निर्धारित आरी मतलब क्षेत्रफल पर पट्टा देती है व इसकी उपज भी निर्धारित होती है एवं कई बार कम उपज होने पर किसानों के अफीम के पट्टे भी कट जाते हैं।

परवान पर काले सोने की खेती
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