भारत-पाक की तरह है राजस्थान और गुजरात के दो गांवों में विवाद, 64 साल से जारी है जंग
उदयपुरPublished: Aug 13, 2019 12:26:01 pm
दोनों राज्यों की सीमा पर 200 बीघा जमीन का मसला, राजस्थान की बाखेल और गुजरात की कालीकांकर पंचायतें, बुवाई को लेकर फिर पनपा विवाद
भारत-पाक की तरह राजस्थान-गुजरात के बीच सीमा विवाद
नारायणलाल वडेरा. कोटड़ा . राजस्थान एवं गुजरात के बीच सीमा विवाद को लेकर कोटड़ा में फसल बुवाई के समय झगड़े की स्थिति पैदा होती है। जमीनी हक को लेकर ग्रामीण थाने से लेकर कोर्ट के चक्कर सालों से लगा रहे हैं। विवाद दोनों राज्यों के दो गांवों के बीच 200 बीघा जमीन का है, जो 64 सालों से बरकरार है। हर साल बरसात के बाद बुवाई को लेकर दोनों पक्ष जमीन पर पहुंचते हैं और तनाव बढ़ जाता है। विवाद राजस्थान में उदयपुर जिले की कोटड़ा तहसील के बाखेल पंचायत के झांझर गांव के क्यारिया फला और गुजरात के साबरकांठा जिले की पोशिना तहसील के कालीकांकर पंचायत के गवरी फला गांवों का है। विवाद महज इन गांवों का नहीं, बल्कि दोनों राज्यों का है। राज्य सीमा से जुड़े झांझर का क्यारिया फला, आंजनी, बुझा, कालीकांकर का गवरी फला, महाड़ी का वियोल, मंडवाल, राजपुर, बुढिय़ा, भूरी ढेबर गांव भी प्रभावित है।
यों शुरू हुआ विवाद
सेटलमेंट के समय (वर्ष 1955 में) जमीन खाते की जा रही थी, तब राजस्थान सरकार ने झांझर गांव के लोगों के हक में जो जमीन आई, वह दे दी। वर्ष 1958-59 में जब गुजरात का भूमि सेटलमेंट हुआ, गुजरात के किसानों को भी इसी जमीन का हक दे दिया गया। इसके बाद से ही दोनों गांवों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया। दोनों गांवों के किसान अपना हक जताने लगे। लिहाजा 1955 में पनपा विवाद अब तक जारी है।
झांझर को पूर्वजों से मिली जमीन
झांझर गांव के बुजुर्ग विरमा अर्जन बुम्बरिया बताते हैं कि झांझर और गवरी के बीच की विवादित जमीन लयो रेबारी नामक व्यक्ति ने दी थी। झांझर से तीन किलोमीटर दूर मांडवा में रेबारी का घर था। रेबारी इस जमीन पर मवेशी चराता था, लिहाजा उसी का हक माना जाता था। रेबारी ने जमीन झांझर गांव को दान कर दी।
रियासत काल से हक
झांझर के पटेल मानिया के पुत्र रेवा बुम्बरिया ने कहा कि क्षेत्र के राव जमीन का लगान लेते, तब हमने भी लगान चुकाया। रियासती सीमा बंटवारे के समय जमीन गांव को मिली। जब राजस्थान में भू नामांतरण हुआ, तब जिसके हिस्से जितनी जमीन आई दे दी। गुजरात का भू नामांतरण देर से हुआ, ऐसे में जमीन झांझर गांव को पहले ही मिल चुकी थी।
22 साल पहले मंथन
विवाद सुलझाने के लिए वर्ष 1997 में गुजरात-राजस्थान के अधिकारी और पुलिस मांडवा में एकत्र हुए थे। उस समय दोनों गांवों के किसानों को पाबंद किया गया था। विवाद नहीं मिटने तक बुवाई नहीं करने को कहा। इसके 17 साल बाद 2014 में गुजरात के किसानों ने विवादित जमीन पर खेती शुरू कर दी। दोनों पक्ष आमने-सामने हो गए। घटना 8 अगस्त 2014 की है, जब दोनों पक्षों में लाठी-भाटा, तीर-कमान से जंग हुई। गोलियां भी चली, जिसमें कई लोग घायल हुए।
सरकारें बदली, नहीं सुलझा विवाद
दोनों गांवों के किसान 64 साल से जमीन पर हक जता रहे हैं, लेकिन उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। दोनों पक्षों के किसान निगरानी रखते हैं, लेकिन उपयोग नहीं कर पाते। उपयोग तो दूर विवादित जमीन से गुजरना भी तनाव पैदा करता है। दोनों पक्षों के किसानों ने अपनी-अपनी सरकारों से कई बार समाधान मांगा, लेकिन सरकार बदलने के साथ ही विवाद ठण्डे बस्ते में जाता रहा। क्षेत्रीय अधिकारियों के तबादले होते रहने से भी समधान नहीं हो पाया।
भेज रखे हैं 14 प्रकरण
सीमा विवाद उच्चस्तरीय मामला है। कोटड़ा तहसील से जमीन विवाद के कुल 14 प्रकरण उदयपुर कलक्ट्रेट भेज रखे हैं। पूर्व में दोनों राज्यों के अधिकारियों की बैठक भी हुई, जिनका समाधान अभी नहीं हुआ है।
भाणाराम मीणा, तहसीलदार, कोटड़ा
मूल जमीन पर विवाद से 22 किसान प्रभावित हो रहे हैं। मामला सीमा ऑवरलेपिंग का है। दोनों ओर के किसानों के नाम जमीन है। मामला सरकारी उच्च स्तर का है। दोनों सरकारों को बैठकर बीच का रास्ता निकालना चाहिए।
रघुवीर शर्मा, तत्कालीन तहसीलदार, कोटड़ा
दोनों सरकारों के बीच संवाद जरूरी
क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि मामला दो राज्यों के बीच सीमा विवाद का है, ऐसे में दोनों राज्यों की सरकारों के बीच संवाद होना जरूरी है। इसी से मसला हल हो सकता है।