भाई “मिल्कासिंह” ने बहन को दौड़ा दौड़ाकर “पीटी उषा” बना दिया
उमेश मेनारिया. मेनार. रक्षाबंधन भाई बहन को रक्षा का वचन देकर स्नेह का धागा बंधवाता है, लेकिन ऐसे बिरले ही भाई होंगे, जिन्होंने बहन का भविष्य संवारने में पूरी ताकत झोंक दी। अगर बहन भी भाई के टूटे सपनों पर मरहम लगाकर सिर गर्व से ऊंचा उठा दे तो क्या कहिए। भाई-बहन की एक जोड़ी का किस्सा ऐसा ही है। एक भाई ने खेल मैदान में चल रही राष्ट्रीय स्पर्धा में असफल होकर घुटने टेक दिए। उसी मैदान को दस साल बाद छोटी बहन ने फतह कर भाई का सिर फक्र से ऊंचा कर दिया। कहानी वल्लभनगर क्षेत्र खेरोदा निवासी शारीरिक शिक्षक सुरेश जाट और उनकी छोटी बहन सुनीता की है। खेल स्पर्धा में जीत हासिल करने में माहिर भाई-बहन की जोड़ी क्षेत्र के लिए मिसाल बनी हुई है। सुनीता चार और सुरेश 17 साल के थे, तब ही पिता का साया सिर से उठ गया। परिवार टूट सा गया, लेकिन सुरेश ने खुद को कमजोर नहीं पडऩे दिया। उन्होंने बहन को कभी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। खेलों में रुचि के चलते स्पर्धाओं में जोर आजमाइश की, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पदक नहीं जीत पाए। आखिर बहन को मैदान में उतारा और पूरजोर कोशिश के लिए हौसला बढ़ाया। मां घिसी बाई का संघर्ष भी कम नहीं था। भाई-बहन का लक्ष्य भांपते हुए मां ने दोनों को खेती और घरेलू काम से दूर रखा। आखिर कड़ी मेहनत कर वर्ष 2003 में सुरेश शारीरिक शिक्षक बन गए। बहन को भी बीए, बीपीएड और योग शिक्षा में पारंगत किया। सुनीता नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट सुरेश ने वर्ष 2008 में कर्नाटक में आयोजीत 10 किलोमीटर क्रॉस कंट्री राष्ट्रीय स्पर्धा में हिस्सा लिया था। कड़ी मेहनत के बावजूद खिताब से चूक गए। आखिर सुरेश ने ठान ली और मैदान में बहन का हाथ थाम लिया। आठवीं में पढ़ती बहन सुनीता को खिलाड़ी बनाने में दिन-रात एक कर दिए। आखिर सुनीता का खेल निखरता गया और 10 साल बाद कर्नाटक के उसी मैदान को सुनीता ने फतह किया। सुनीता ने 5 और 10 किलोमीटर क्रॉस कंट्री रेस में राष्ट्रीय स्तर का खिताब जीता। इससे पहले सुनीता लगातार पांच साल स्टेट चैंपियन रही। आखिर जेल प्रहरी बनी सुनीता राष्ट्रीय पदक विजेता सुनीता को खेल कोटे का लाभ हुआ और जेल प्रहरी पद पर चयन हो गया। किसान पुत्र सुरेश वर्तमान में नवानिया स्थित राजकीय विद्यालय में शारीरिक शिक्षक हैं।
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