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सूखे वन्यजीवों के कंठ तो ऊंटों पर लाद कर लाए पानी

locationउदयपुरPublished: Jul 14, 2019 01:35:38 pm

Submitted by:

madhulika singh

मानसून की बेरूखी से राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ अभयारण्य के घने जंगल में बारहमासी कल-कल बहने वाले झरनों के रीतने से वन्यजीवों के कंठ सूख गए है। पानी के अभाव में कई वन्य जीव अपना बसेरा छोडक़र इंसानी बस्तियों का रुख कर रहे हैं। इसी कारण से इंसानी हमले और सडक़ हादसों में वन्यजीवों की मौतें बढ़ गई हैं।

Kumbhalgarh sanctuary

सूखे वन्यजीवों के कंठ तो ऊंटों पर लाद कर लाए पानी

मानवेन्द्रसिंह राठौड़/उदयपुर . मानसून की बेरूखी से राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ अभयारण्य के घने जंगल में बारहमासी कल-कल बहने वाले झरनों के रीतने से वन्यजीवों के कंठ सूख गए है। पानी के अभाव में कई वन्य जीव अपना बसेरा छोडक़र इंसानी बस्तियों का रुख कर रहे हैं। इसी कारण से इंसानी हमले और सडक़ हादसों में वन्यजीवों की मौतें बढ़ गई हैं। ऐसे में वन विभाग पिछले ढाई माह से किले से करीब दो हजार फीट गहराई में ऊंटों के माध्यम से जंगल में पानी पहुंचाकर वन्य जीवों को बचाने की जुगत कर रहा है। ठंडी बेरी रेंज में कुछ जगह पर मारवाड़ की ओर से टैंकर मंगवाकर वाटर हॉल भरे जा रहे हैं। इस वर्ष भी मेह बाबा की मेहरबानी नहीं हुई तो हालात भयावह हो जाएंगे। गत मानसून में राजसमंद जिले में बरसात बहुत कम होने से कुंभलगढ़ अभयारण्य क्षेत्र के एनिकट व खादरे रीत गए हैं। नदी-नाले व झरनों में एक बंूद पानी नहीं है। वन विभाग के आरेट नाके से ठंड़ी बेरी तक जगह-जगह बने 20 से अधिक एनिकट सूख गए हैं। ऐसे भयावह हालात तो गत वर्ष भी नहीं थे। कुंभलगढ़ दुर्ग से करीब 600 मीटर की गहराई में बना ठंड़ी बेरी तालाब भी सूखकर चरागाह बन गया है, जहां मवेशी चर रहे हैं।
अब तक खरीद चुके हैं 4 लाख का पानी
वन विभाग ने इस वर्ष कुंभलगढ़ व रावली-टाडगढ़ अभयारण्य की 12 रेंज में मई-जून के दौरान 4 लाख रुपए का पानी खरीद कर वन्यजीवों की जान बचाने के प्रयास किए हैं। अरावली की वादियों में खुदे 5 से 6 कुओं से पंप के जरिये पानी निकालकर वाटर हॉल भरे जा रहे हैं। भीषण गर्मी में ऊंटों की मदद से गहरे दर्रों में दुर्गम रास्ते से पानी पहुंचाया गया और पानी के वाटर हॉल भरे गए। इसके अलावा टैंकरों व जिप्सी से पानी लाकर डलवाया गया। कुंभलगढ़ की पांच रेंज में करीब 800 टैंकर पानी गोड़वाड़ के घाणेराव व मुछाला महावीर से लाया गया। प्रति रेंज में 30 हजार का पानी खरीदा गया है।भटकते हैं वन्यजीव : पैंथर, सूअर, बंदर, नीलगाय आदि वन्यजीव मई-जून की भीषण गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिए अभयारण्य क्षेत्र से बाहर गए। ये वन्यजीव ऊपर की ओर जाने वाले रास्ते से कुंभलगढ़, गवार, उदावड़,थुरावड़, झीलवाड़ा, कोटड़ा और नीचे की ओर रास्ते से ठंड़ी बेरी, घाणेराव, मुछाला महावीर, राजपुरा, मांड़ीगढ़, देसूरी होते हुए मारवाड़ तक गए। प्यास बुझाने के लिए कई बार बस्तियों में घुसे इन वन्यजीवों पर इंसानी हमले की घटनाएं भी हुई।
-पिछले वर्ष बारिश कम होने से अभयारण्य में प्राकृतिक खादरों व एनिकटों में पानी सूख गया है। वन्यजीवों को बचाने के लिए ऊंटों व टैंकरों के माध्यम से वाटर हॉल में पानी भरा गया। मानसून की एक बारिश में ही पानी की समस्या से निजात मिल जाएगी।
यादवेंद्रसिंह चुण्ड़ावत, सहायक वन संरक्षक रेंज कुंभलगढ़
कहां-कितने वाटर हॉल
अभयारण्य की पांच रेंजों में 46 वाटरहोल बनाए गए है। इसके अलावा सादड़ी में18, देसूरी में 34, झीलवाड़ा में 20 व बोखाड़ा में 19 वाटरहोल बने हुए हैं।

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