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मजबूरी का नासूर: बाल श्रम तोड़ रहा बचपन

locationउदयपुरPublished: Nov 12, 2021 08:52:12 am

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bhuvanesh pandya

– प्रदेंश के हर जिले में बाल श्रमिक आए सामने
– विभाग की कार्रवाई नाकाफी
– सख्ती नहीं होने से असर नहीं

मजबूरी का नासूर: बाल श्रम तोड़ रहा बचपन

मजबूरी का नासूर: बाल श्रम तोड़ रहा बचपन

भुवनेश पंड्या
उदयपुर. ये ऐसा नासूर है जो बच्चों से बचपन ही छीन रहा है। किसी के नन्हें कांधों पर परिवार पालने की मजबूरी है तो कोई माता-पिता के दबाव में बचपन खोकर हाड़ तोड़ मेहनत में लग गया है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन ये मासूम चेहरे अब ऐसे बाल श्रम के दलदल में फंसकर रह गए हैं, कि वहां से निकलना इनके लिए आसान नहीं है। हालात ये है कि सरकार के निर्देश पर विभाग खानापूर्ति की तरह कार्रवाई करता है, लेकिन ये भी ऐसी कार्रवाई है जिसका असर लम्बे समय तक नहीं रहता। कुछ बच्चे जरूर एक बार फिर शिक्षा द्वार की ओर बढ़ जाते है, लेकिन अधिकांश बच्चों की तकदीर नहीं बदलती। प्रदेश में दिसम्बर 2018 से जनवरी 2021 तक एक भी जिला ऐसा नहीं है जहां बाल श्रमिक सामने नहीं आए। विभिन्न उद्योगों, फैक्ट्रियों, दुकानों, राजमार्गो पर बने ढाबों, घरों में चलने वाले लघु एवं कुटीर उद्योग व्यवसाय में नाबालिग बच्चों से बाल श्रम करवाये जाने के 1713 प्रकरण दर्ज हुए है। 4399 बाल श्रमिकों को मुक्त करवाया गया है।
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यहां भी केवल कागजी काम

राज्य सरकार द्वारा बाल श्रम की रोकथाम हेतु मानक संचालन प्रक्रिया निर्धारित की जाकर विभिन्न विभागों की भूमिकां तय की गई है। इसे लेकर श्रम विभाग द्वारा राज्य के समस्त जिलों में कलक्टर की अध्यक्षता में जिला बाल श्रम टास्क फ ोर्स का गठन करवाया जा चुका है। हालांकि कई जिलों में इसकी नियमित बैठके नहीं होती तो कई बार केवल खानापूर्ति से ही काम चलाया जाता है।
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ऐसे है कारवाई का प्रावधान-

बालश्रम संबंधी शिकायत सूचना प्राप्त होने पर संबंधित विभागों यथा बाल अधिकारिता, सामाजिक न्याय एव अधिकारिता, पुलिस, श्रम, व बाल कल्याण समिति सदस्य, चाईल्डलाइन 1098 प्रतिनिधि, स्वंयसेवी संस्था प्रतिनिधि संयुक्त दल द्वारा मौके पर जाकर बाल श्रमिक को मुक्त कराया जाकर जिले की बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत करते है। उक्त प्रकरणों में पुलिस द्वारा किशोर न्याय अधिनियम, 2015 व बाल एवं कुमार प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम,1986 के तहत वाद दायर किया जाता है। श्रम विभाग द्वारा प्रकरणों के संबंध में न्यूनतम वेतन एवं वेतन भुगतान संबंधी प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई करते हैं, हालंाकि कई बार बच्चे बाल श्रम के पाश से छुड़ाने के बाद कुछ समय में ही फिर से इसी काम में लग जाते है।
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ये किए जतन-

– विभाग ने बाल श्रम रोकने के कई जतन किए हैं, लेकिन ये नाकाफी है, इसमें विभाग द्वारा दुकान एवं वाणिज्यिक संस्थान अधिनियम के तहत जारी पंजीयन प्रमाण पत्र पर बाल श्रमिक रखना अपराध है, के स्लोगन ऑनलाईन अंकित करवाये गये हैं। साथ ही पुलिस ने समय-समय पर अलग-अलग नामों से प्रदेश के विभिन्न जिलों में अभियान चलाए। इसमें ऑपरेशन खुशी, ऑपरेशन आशा शामिल है।
– विभाग द्वारा बालश्रम की रोकथाम हेतु सघन अभियान संचालित किया गया जिसमें माह जून से नवम्बर 2020 तक 5629 संस्थानों का सर्वे निरीक्षण किया जाकर 5089 नियोक्ताओं से बाल श्रम नहीं करवाने के वचन पत्र भरवाये गये।
– विभाग द्वारा कोविड.19 महामारी के परिपेक्ष्य में बालश्रम के उद्देश्य से हो रही बाल तस्करी को रोकने के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने के लिए राज्य के सभी जिला कलक्टर, महानिदेशक रेलवे सुरक्षा बल, नई दिल्ली एवं बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडि़शा राज्य के श्रम सचिवों को 1 जुलाई 20 को पत्र जारी किया।
– 4 नवम्बर 20 को सभी जिला कलक्टर्स को राज्य में बाल श्रम पर अंकुश लगाने के लिए बाल श्रम से जुडे कानूनों की सख्ती से पालना हेतु आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश प्रदान किए गये।
– दिसम्बर 2018 से जनवरीए 2021 तक 4399 बाल श्रमिकों को मुक्त करवाया गया। 1713 एफआईआर दर्ज करवाई गई।
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यूं मिले बाल श्रमिक ( दिसम्बर 18 से जनवरी 21)
जिला- प्रकरण- बाल श्रमिक- एफआईआर
जयपुर- 221- 1028-221
कोटा- 27- 689- 27

अजमेर- 38- 84- 38
बीकानेर 24- 33- 24

जोधपुर- 58-95-58
उदयपुर 178- 483- 178

भरतपुर- 47- 67- 47
अलवर- 31-100-31

भीलवाड़ा- 32- 70- 32
चित्तौडगढ़़- 18- 30-18

श्री गंगानगर 31-108- 31
पाली-79- 107-79
बांसवाड़ा- 64-177-64
नागौर- 51- 81- 51

सवाई माधोपुर- 42-42- 42
सीकर- 41-41-41

बाड़मेर- 23-45-23
टोंक- 7-178-7

सिरोही- 208- 208-208
बारां- 6-50-6

बूंदी- 34-62-34
चूरू- 36-40-36

दौसा- 59-59-59
धोलपुर- 16-16-16

डूंगरपुर- 66-189-66
हनुमानगढ़- 39-39-39

जालौर – 13-17-13
झालावाड़- 84-84-84
झुन्झुनूं- 34-34-34
प्रतापगढ़- 60-60-60

करौली- 9-9-9
जैसलमेर- 20-20-20

राजसमन्द- 17-54-17
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कुल- 1713- 4399- 713

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