फर्जी तरीके से नामांतरण की थी शिकायत परिवादी ने रिपोर्ट में बताया था कि पाड़ोला के किसान गेंदाल पारगी ने वर्ष 2010 में 51 बीघा जमीन जनजाति आवासीय छात्रावास बनाने के लिए ग्रामसभा में सरकार को समर्पित की थी। 14 नवम्बर 2008 को उसका नामांतरण भी हो गया। उक्त भूमि पर टीएडी से 14 करोड़ रुपए स्वीकृत होकर वहां छात्रावास का निर्माण करवाया गया। वर्ष 2015-16 में वहां शिक्षण कार्य भी प्रारंभ हो गया। सरकार की इसी भूमि को पूर्व मंत्री मालवीय ने नियम विरुद्ध ग्रामदानी नहीं होने के बावजूद स्वयं के नाम करने प्रस्ताव रखा, जो एक बार निरस्त हो गया। बाद में उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर 1 जून 2014 को जमीन खरीदकर अपने नाम करवा ली। ग्रामदान अधिनियम 1971 की धारा 40 के अंतर्गत मालवीय नाहरपुरा के निवासी होने से यह जमीन खरीद ही नहीं सकते थे लेकिन उन्होंने स्वयं को पाडोला निवासी साकीनदेह बता रिकार्ड में अंकन करवा दिया। रिकॉर्ड के अनुसार आज सरकारी छात्रावास भवन पूर्व मंत्री मालवीय के नाम पर दर्ज जमीन पर खड़ा है।
एसीबी ने जांच में मानी गड़बड़ी
– एसीबी ने जांच में माना कि ग्रामदानी भूमि के क्रय-विक्रय संबंधी राजस्थान ग्रामदान अधिनियम बना हुआ है। नियम के अनुसार किसी भी ग्रामदानी ग्राम की भूमि को वह व्यक्ति ही क्रय विक्रय कर सकता है जो ग्रामदान ग्राम का सदस्य हो।
– एसीबी ने जांच में माना कि ग्रामदानी भूमि के क्रय-विक्रय संबंधी राजस्थान ग्रामदान अधिनियम बना हुआ है। नियम के अनुसार किसी भी ग्रामदानी ग्राम की भूमि को वह व्यक्ति ही क्रय विक्रय कर सकता है जो ग्रामदान ग्राम का सदस्य हो।
– किसान गेंदाल ने 4 मार्च 2006 को उक्त भूमि को मालवीय को विक्रय की। उसके बाद 2008 को राज्य सरकार ने सार्वजनिक कार्य के लिए पाडोला ग्राम सभा को दान कर दी। इस पर सरकार ने 12 करोड़ रुपए व्यय कर जनजाति आवासीय छात्रावास का निर्माण करवाया।
– वर्ष 2014 में मालवीय ने संपूर्ण भूमि का नामांतरण नियम विरुद्ध करते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया। तत्कालीन अध्यक्ष कमलाशंकर, पटवारी धनपाल पारगी से मिलीभगत कर नामांतरण खोला।
– वर्ष 2014 में मालवीय ने संपूर्ण भूमि का नामांतरण नियम विरुद्ध करते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया। तत्कालीन अध्यक्ष कमलाशंकर, पटवारी धनपाल पारगी से मिलीभगत कर नामांतरण खोला।
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– सभी को यह जानकारी थी कि उक्त भूमि सरकार के नाम दर्ज है और इस पर छात्रावास का निर्माण किया जा चुका है, उसके बावजूद मालवीय के पक्ष में नामांतरण खोला जबकि उक्त भूमि को वे क्रय करने का अधिकार ही नहीं रखते है।
– सभी को यह जानकारी थी कि उक्त भूमि सरकार के नाम दर्ज है और इस पर छात्रावास का निर्माण किया जा चुका है, उसके बावजूद मालवीय के पक्ष में नामांतरण खोला जबकि उक्त भूमि को वे क्रय करने का अधिकार ही नहीं रखते है।