प्रदेश के हर जिले में बाल श्रम से मुक्ति के लिए कलक्टर की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया है। इस फोर्स के गठन का मुख्य उद्देश्य बाल श्रमिकों को बेगारी से मुक्त करवा शिक्षा व समाज की मुख्यधारा से जोडऩा है। इसके बावजूद पिछले पांच वर्ष में प्रदेश के 33 में से 24 जिलों ने सर्वे ही नहीं किया। उदयपुर जिला भी इनमें से एक है। जिन 12 जिलों में सर्वे हुए, इनमें भी महज 12552 बाल श्रमिक सामने आए। खास बात यह है कि सीकर, झुंझुनंू में गत दो वर्ष में दो सर्वे करना बताया गया, लेकिन इनमें से एक में भी कोई बाल श्रमिक नजर नहीं आया।
—- सर्वे की स्थिति जिला….सर्वे …बाल श्रमिक
सीकर…वर्ष 18-19…एक भी नहीं हनुमानगढ़….हुआ….33
अलवर…वर्ष 2016 व 17… 802 झुंझुनूं….हुआ… कोई नहीं
भीलवाड़ा…हुआ…696 चूरू…2018…700
दौसा..हुआ…467 टोंक…हुआ….2618
जैसलमेर..हुआ…130 कोटा….2018 ….1928
बांसवाड़ा…हुआ….2793 यहां नहीं हुआ सर्वे
उदयपुर, झालावाड़, अजमेर, राजसमन्द, प्रतापगढ़, डूंगरपुर. चित्तौडगढ़़, पाली, जालौर, जोधपुर, करौली, बीकानेर, नागौर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, श्रीगंगानगर, सिरोही, बारां, बूंदी, भरतपुर, बाड़मेर। —– समय-समय पर कार्रवाई की जाती है। माता-पिता तक उन्हें पहुंचाते हुए स्टाम्प पर पाबंद करते हैं। हर वर्ष में करीब 20 बाल श्रमिक पकड़ कर छुड़वाते हैं। इन्हें बाल कल्याण समिति को दिया जाता है, लेकिन पारिवारिक परिस्थितिवश ये बच्चे स्थान छोड़ देते हैं, लेकिन काम करना नहीं छोड़ते है।
सज्जाद अहमद, श्रम अधिकारी उदयपुर