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गुजरात-महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरी का शिकार हो रहे आदिवासी बच्चे-श्रमिक

locationउदयपुरPublished: Nov 26, 2022 02:24:10 am

संस्थाओं की शिकायत पर छूटते, लेकिन जेजे एक्ट में नहीं होती कार्रवाई, रोजगार की तलाश में पलायन, लेकिन सुरक्षा को लेकर स्थिति विकट, शारीरिक क्षति पर नहीं मिलता मुआवजा, मौत पर कार्रवाई ही नहीं, कई बच्चे-किशोर लापता होने पर ढूंढ़ते रह जाते परिजन

गुजरात-महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरी का शिकार हो रहे आदिवासी बच्चे-श्रमिक

गुजरात-महाराष्ट्र में बंधुआ मजदूरी का शिकार हो रहे आदिवासी बच्चे-श्रमिक

बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को लेकर राजस्थान सरकार भले ही सचेत हो, लेकिन गुजरात-महाराष्ट्र में उनके साथ अपराध होने पर सुनने वाला कोई नहीं। दक्षिण राजस्थान से इन राज्यों में जाने वाले बच्चों-किशोरों के साथ आए दिन अपराध होते हैं। कभी बंधुआ बनाकर मजदूरी कराते हंै तो कभी हिंसा के शिकार होते हैं। अंचल में सक्रिय एनजीओ की शिकायत पर छूट तो जाते हैं, लेकिन आरोपियों पर जेजे एक्ट में कार्रवाई नहीं होती। काम के दौरान हादसे में शारीरिक क्षति पर मुआवजा मिलता है ना मौत पर कार्रवाई होती है।
आदिवासी क्षेत्र से मानव तस्करी, बंधुआ मजदूरी, बालश्रम के मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। परिवार को लालच देकर, बच्चों को बहला फुसलाकर गुजरात ले जाया जाता है। बच्चे ना मेहनतकश काम का विरोध कर पाते हैं ना मेहनताना मांगने का हक जता पाते हैं। गुजरात-महाराष्ट्र गए ऐसे कई बच्चों का आज तक पता नहीं चला।
मेहनताना नहीं देने के कई केस

गोगुंदा-सायरा क्षेत्र से गुजरात-महाराष्ट्र जाने वाले बच्चे और उनके परिजन दलालों की बातों में आते हैं। आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें बालश्रमिकों को ले जाने और फिर काम बदले भुगतान नहीं किया जाता है। आजिविका ब्यूरो संस्था के पास आए दिन ऐसी शिकायत मिल रही है।
पलायन की मजबूरी

उदयपुर जिले के खेरवाड़ा, झाड़ोल, कोटड़ा, गोगुन्दा क्षेत्र से हजारों की तादाद में लोग मजदूरी के लिए जाते हैं। नजदीकी राज्य गुजरात के महानगरों की ओर पलायन ज्यादा होता है। वहां काम ज्यादा मिलने से पलायन आम बात है, लेकिन युवाओं, वयस्कों के साथ बच्चे-किशोरियां भी चले जाते हैं।
इसलिए बच्चे झोंक दिए जाते काम में

– बच्चों को 12-18 घंटे तक काम करवाया जाने पर भी वे मेहनताना नहीं मांग पाते

– कमरतोड़ काम करवाने वाले नियोक्ता दलालों को भारी रकम दे चुके होते हैं
– युवाओं की एक पगार के बजाय मजदूरी के लिए तीन बच्चे मिल जाते हैं

– बच्चे ज्यादा काम का विरोध भी नहीं कर पाते, जबकि युवा काम छोड़ जाते हैं

हालात, जो करते हैं आहत
– पुलिस मानव तस्करी, बालश्रम अधिनियम, जेजे एक्ट में मामला दर्ज नहीं करती

– श्रम विभाग रेस्क्यू के बाद निगरानी नहीं करते, जिससे पुन: बालश्रम होता है

– बाल संरक्षण आयोग रेस्क्यू बच्चों के पुनर्वास का बंदोबस्त नहीं करता
– शिक्षा विभाग जागरूक नहीं करता, शिक्षक पढ़ाने तक ही सीमित रहते हैं

तीन साल में यह रही स्थिति

978 बालश्रमिक गुजरात-महाराष्ट्र गए

122 बालश्रमिकों को रेस्क्यू किए गए

150 शिकायतें सालाना मिलती रही है
100 से ज्यादा अपराध व घटना के शिकार

केस 01

नांदेश्मा निवासी भूरीलाल गायरी मजदूरी के लिए गुजरात गया था। वापी गुजरात में एक कारखाने में काम किया। कढ़ाई से तेल शरीर पर गिरा तो वह फिसलकर भट्टी में गिर गया। झुलसने पर ना इलाज मिला, ना 7 माह की मजदूरी दी।
केस 02

कोटड़ा के रणेशजी निवासी 14 वर्षीय धुलाराम गरासिया राजकोट गया था। यहां काम के दौरान करंट लगने से झुलस गया था। उपचार के बाद भी आखिर एक हाथ काटना पड़ा। इसे भी ठेकेदार ने किसी तरह की सहायता नहीं दी।
केस 03

गोगुंदा के दादीया निवासी लक्ष्मण गमेती को ठेकेदार रसोई का काम करवाने जामनगर ले गया। आटा गूंथने की मशीन में हाथ आ गया। अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां हाथ काटना पड़ा। ठेकेदार ने भी मदद नहीं की।
केस 04

पड़ावली निवासी बालक को बाड़मेर स्थित होटल से छुड़वाया गया, जहां उसे बंधक बनाकर काम करवाया जा रहा था। पुलिस ने छुड़वा दिया, लेकिन बच्चे को मेहनताना नहीं मिला। बच्चे और उसके पिता के साथ मारपीट की गई वो अलग।
इनका कहना…

आर्थिक परेशानियों में बच्चे जाते हैं। प्रचार और सजगता की आवश्यकता है। हाल ही में जिला प्रशासन से चर्चा की। शिक्षकों की बड़ी भूमिका हो तो बच्चे बालश्रम में नहीं जाएंगे। ग्राम पंचायत स्तर पर काम होना चाहिए।
ध्रुव कुमार कविया, अध्यक्ष, सीडब्ल्यूसी

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