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उदयपुर

क्लेम लेने के लिए बदल दिया चालक, पत्नी ने पति, मित्र व इंश्योरेंस कंपनी को बनाया विपक्षी, वाद खारिज

पांच वर्ष पहले गोवद्र्धन विलास स्थित टेक्नो मोटर्स के पास कार दुर्घटना में मारे गए चिकित्सक डॉ. मदनमोहन मंगल के पुत्र व उसके मित्र के मामले में इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ पेश ३.३२ करोड़ के क्षतिपूर्ति वाद को न्यायालय ने खारिज कर दिया।

उदयपुरMay 12, 2017 / 01:10 am

madhulika singh

 Accident Claim

Accident Claim

पांच वर्ष पहले गोवद्र्धन विलास स्थित टेक्नो मोटर्स के पास कार दुर्घटना में मारे गए चिकित्सक डॉ. मदनमोहन मंगल के पुत्र व उसके मित्र के मामले में इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ पेश ३.३२ करोड़ के क्षतिपूर्ति वाद को न्यायालय ने खारिज कर दिया। मामले में एेसे गवाह पेश किए गए जो दुर्घटना के दौरान घायलों को अस्पताल ले जाने के बजाय नाम-पते पूछ रहा था।
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शैलजा मंगल ने अपने पति डॉ. मदन मोहन मंगल, पुत्र रचित के मित्र प्रियंक शर्मा व नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को विपक्षी बनाते हुए मोटर दुर्घटना अधिकरण न्यायालय में क्षतिपूर्ति का वाद दायर किया था। डॉ. मंगल ने कहा कि दुर्घटनाग्रस्त वाहन कार मशीनरी है व हाई-वे पर वाहनों की लाइटों व हिट के कारण अन्य वाहन के ऊपर आ जाने से ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई। दुर्घटना के समय वाहन की गति धीमी होने के बावजूद वह पलटी खा गया। चालक का दोष नहीं रहा। विपक्षी बीमा कंपनी की ओर से अधिवक्ता के.एम. सेठी ने न्यायालय को बताया कि दुर्घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट चिराग द्वारा दर्ज करवाई गई कि रचित ने कार गफलत व लापरवाही से चलाई, इसलिए वह नाले में गिर गई और दो की मौत हो गई। चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण क्रम-२ की पीठासीन अधिकारी मीनाक्षी शर्मा ने वाद खारिज कर दिया।
रोचनामचा व एफआईआर चालक अलग, आरोप पत्र में अलग

एफआईआर में डॉ. चिराग ने दुर्घटना के समय रचित द्वारा वाहन चलाने का तथ्य अंकित किया, परंतु अनुसंधान में प्रियंक द्वारा वाहन चलाना बताया गया। प्रियंक ने भी बयानों में कहा कि वह वाहन नहीं चला रहा था, लेकिन कौन चला रहा था, इसके बारे में नहीं बताया।
प्रियंक ने बयानों में स्पष्ट किया कि उसके पास लाइसंेंस होने के कारण पुलिस वालों ने उस वक्त चालक होना बताया दिया, जबकि रोजनामचे में रचित मंगल द्वारा ही कार चलाना जाना अंकित किया गया।
दुर्घटना के समय राहगीर संजय राठौड़ ने अपनी साक्ष्य में कथन किया कि वह रात तीन बजे शादी समारोह से साथी रमेश व प्रहलाद के साथ बलीचा से गोवद्र्धन विलास आ रहा था। तेज गति से कार क्रॉस होकर आगे निकली और पलट गई। उसने बताया कि स्टीयरिंग में फंसे युवक ने अपना नाम प्रियंक शर्मा व बापू बाजार में डॉ. शर्मा का पौत्र होना बताया। पास में चिराग को बैठा बताया। पीछे बैठे दो की फाटक खुलने और नाले में गिरने से मौत के बयान दिए। न्यायालय ने कहा कि इतनी भंयकर दुर्घटना के समय कोई को राहगीर कार में फंसे व्यक्तियों की मदद करता है तो पहला प्रयास दुर्घटना में घायल सभी व्यक्तियों को बचाने का किया जाता है न कि उसका नाम-पता, पिता का नाम आदि पूछता है। यह जानकारी तो बचाने के बाद भी जुटाई जा सकती है।
 डॉ. मंगल ने कहा कि दुर्घटना के वक्त उसकी कार प्रियंक लेकर गया था और कार वहीं चला था। न्यायालय ने कहा कि यह सोच समझकर दिया जवाब है, क्योंकि सामान्य परिस्थितियों में कोई भी पिता अपनी गाड़ी अपने पुत्र को चलाने के लिए देगा न कि उसके मित्र को। दुर्घटना के समय पांच मित्र सवार थे।
मौका नक्शा के अवलोकन में आगे बैठे दो युवकों की मौत हो गई जबकि पीछे वाले तीनों बच गए थे।

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