कुछ साल पहले महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने सीताफल से पल्प (गूदा) निकालकर आइसक्रीम सहित अन्य उत्पाद की तकनीक इजाद की। वही तकनीक अब राजस्थान से बाहर निकल 5 अन्य राज्यों में फैल गई है। देश में जहां-जहां सीताफल पैदा होते हैं, वहां के प्रशासन और अन्य संस्थाओं ने इस तकनीक को अपनाया है।
मेवाड़ की तकनीक और यहां पैदा होने वाले सीताफल से निकला गूदा आइसक्रीम बनाने वाली कंपनियां खरीद रही है। शादी समारोह और होटलों में भी सीताफल के पकवान बनाने को लेकर पल्प की डिमांड बढ़ रही है। एमपीयूएटी की तकनीक को न केवल सराहना मिली, बल्कि हजारों लोगों के रोजगार का जरिया भी बनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बातÓ कार्यक्रम में इस प्रोजेक्ट की सराहना कर चुके हैं।
इन संस्थानों ने अपनाई तकनीक
– वेंकटेश एग्री इंडस्ट्री, कर्नाटक
इन संस्थानों ने अपनाई तकनीक
– वेंकटेश एग्री इंडस्ट्री, कर्नाटक
– संतराम आइसक्रीम आनन्द-गुजरात
– दीप फ्रीज फूड्स नवसारी, गुजरात – सृजन संस्था, पाली, राजस्थान
– स्टेट एग्री डिपार्टमेंट बस्तर-छत्तीसगढ़ – श्रीकृपा पुणे-महाराष्ट्र
– उत्तम फूड्स, इंदौर-मध्यप्रदेश – हेट पल्प, अहमदाबाद-गुजरात
– केलवाड़ा क्रय विक्रय समिति, राजसमंद
– दीप फ्रीज फूड्स नवसारी, गुजरात – सृजन संस्था, पाली, राजस्थान
– स्टेट एग्री डिपार्टमेंट बस्तर-छत्तीसगढ़ – श्रीकृपा पुणे-महाराष्ट्र
– उत्तम फूड्स, इंदौर-मध्यप्रदेश – हेट पल्प, अहमदाबाद-गुजरात
– केलवाड़ा क्रय विक्रय समिति, राजसमंद
– जोविका एग्रो फूड्स, पिण्डवाड़ा
– ओडिविल्ले, इंदौर-मध्यप्रदेश – अंकिता फ्रूट प्रोसेसिंग बोरलई-मध्यप्रदेश
काम की काफी संभावनाएं
हमारी इजाद की तकनीक को देशभर में सराहा गया है। इससे न सिर्फ आदिवासी लोगों को मदद मिली है, बल्कि यह कई लोगों के लिए रोजगार का नया माध्यम भी बनी है। लोगों को नए उत्पाद का स्वाद मिला है। अब भी इस काम में रोजगार की काफी संभावना हैं, क्योंकि हर साल सीताफल की पैदावार की तुलना में महज 2 प्रतिशत ही प्रोसेज हो पा रहा है, जबकि हम इसे कम से कम 10 प्रतिशत तक ले जाने का प्रयास कर रहे हैं।
– ओडिविल्ले, इंदौर-मध्यप्रदेश – अंकिता फ्रूट प्रोसेसिंग बोरलई-मध्यप्रदेश
काम की काफी संभावनाएं
हमारी इजाद की तकनीक को देशभर में सराहा गया है। इससे न सिर्फ आदिवासी लोगों को मदद मिली है, बल्कि यह कई लोगों के लिए रोजगार का नया माध्यम भी बनी है। लोगों को नए उत्पाद का स्वाद मिला है। अब भी इस काम में रोजगार की काफी संभावना हैं, क्योंकि हर साल सीताफल की पैदावार की तुलना में महज 2 प्रतिशत ही प्रोसेज हो पा रहा है, जबकि हम इसे कम से कम 10 प्रतिशत तक ले जाने का प्रयास कर रहे हैं।
– प्रो. आरए कौशिक, प्रोफेसर उद्यानिकी, एमपीयूएटी
दिल्ली में भी बढ़ी डिमांड
मेवाड़ अंचल में सीताफल की पैदावार देने वाले क्षेत्रों से हर साल जंगलों से बड़ी तादाद में सीताफल तोड़कर बिक्री के लिए बाजार में लाया जाता है। आदिवासी परिवार ही ये काम करते हैं, लेकिन मार्केटिंग के अभाव में वे उदयपुर के बाजारों तक ही सीमित रह जाते थे। अब स्वयंसेवी और सहयोगी संस्थाओं की ओर से सीताफल को बाजार उपलब्ध कराया जाने लगा है। उदयपुर से अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर तक सीताफल बीते सालों से भेजा जाता रहा है, लेकिन अब दिल्ली तक इसकी डिमाण्ड होने लगी है।
दिल्ली में भी बढ़ी डिमांड
मेवाड़ अंचल में सीताफल की पैदावार देने वाले क्षेत्रों से हर साल जंगलों से बड़ी तादाद में सीताफल तोड़कर बिक्री के लिए बाजार में लाया जाता है। आदिवासी परिवार ही ये काम करते हैं, लेकिन मार्केटिंग के अभाव में वे उदयपुर के बाजारों तक ही सीमित रह जाते थे। अब स्वयंसेवी और सहयोगी संस्थाओं की ओर से सीताफल को बाजार उपलब्ध कराया जाने लगा है। उदयपुर से अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर तक सीताफल बीते सालों से भेजा जाता रहा है, लेकिन अब दिल्ली तक इसकी डिमाण्ड होने लगी है।
अधिक बरसात से आई बहार बीते सालों में औसत बरसात की तुलना में इस साल अधिक बरसात हुई। बरसात का दौर लम्बा चलने से मेवाड़ के आदिवासी अंचल में सीताफल की पैदावार भी दुगुनी हुई है। उदयपुर जिले में देवला (गोगुन्दा) और कोटड़ा क्षेत्र में होने वाली पैदावार की बात करें तो यहां आमतौर पर 10 से 12 हजार टन सीताफल की पैदावार हर साल होती है। इस साल अधिक बरसात के चलते पैदावार 20 हजार टन तक पहुंच गई। लिहाजा, एक ओर जहां आदिवासियों को अधिक आमदनी हुई वहीं दूसरी ओर सीताफल पल्प की गुणवत्ता भी अच्छी रही।