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संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने हेतु आयुर्वेदिक दवा का निर्माण

locationउदयपुरPublished: May 28, 2020 09:47:14 am

Submitted by:

bhuvanesh pandya

मदन मोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, उदयपुर के विषेषज्ञों ने अनुमोदित किये प्रभावी फार्मुलेऔषधियों से निर्मित किट में नवरसायन योग, नेजल ड्रॉप, माउथ वॉष का किया निर्माणकोरोना योद्धा, पुलिस प्रषासन, जन सामान्य के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने हेतु औषध किट तैयार

संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने हेतु आयुर्वेदिक दवा का निर्माण

संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने हेतु आयुर्वेदिक दवा का निर्माण

भुवनेश पंड्या

उदयपुर. मदन मोहन मालवीय राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, उदयपुर के विषेषज्ञों की समिति द्वारा कॉविड संक्रमण काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि (इम्यूनिटी बूस्टिंग) हेतु आयुर्वेदिक जडी-बूटियों से निर्मित तीन प्रकार के विषेष औषध योग तैयार किये है।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. महेष दीक्षित ने बताया कि कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु सामाजिक दूरी, व्यक्तिगत स्वच्छता एवं स्वअनुषासन के साथ-साथ आयुर्वेद औषधियों से संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि की जा सकती है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा गाईडलाईन भी जारी की गई है। राज्य सरकार द्वारा संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता अभिवृद्धि हेतु काढा वितरण जनसामान्य एवं कोरोना वारियर्स हेतु वितरित किया जा रहा है।आयुष मंत्रालय ने कॉविड-19 संक्रमण से बचाव हेतु तुलसी, सौंठ, दालचीनी, कालीमिर्च से निर्मित आयुष क्वाथ का प्रयोग, दूध में हल्दी का प्रयोग एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता अभिवृद्धि हेतु अष्वगंधा, गिलोय, मुलेठी, पिप्पली आदि रसायनद्रव्यों के समुचित एवं अनुकूलतम उपयोग हेतु गाईडलाईन जारी की गई है।
इसी क्रम में कॉविड 19 संक्रमण से बचाव हेतु उनकी अध्यक्षता में गठित महाविद्यालय की विषेषज्ञों की समिति द्वारा औषधियों का निर्माण एवं एक मार्गदर्षिका तैयार की गई है। प्रो. दीक्षित के अनुसार प्रथम चरण में उदयपुर एवं आसपास के क्षेत्रों की जनता, कॉविड वारियर्स, पुलिस प्रषासन, मीडिया कर्मियों आदि सभी को तीन औषध योगों की 1500 किट, जिसमें नवरसायन योग, माउथ वॉष और नाक में डालने हेतु नेजल ड्रॉप का निर्माण महाविद्यालय की स्वयं की रसायनषाला में निर्मित की गई है। औषध किट में आयुष मंत्रालय द्वारा निर्देषित समस्त औषध योगों का अनुकूलतम मात्रा में प्रयोग किया गया है। साथ ही महाविद्यालय द्वारा तैयार इम्यूनिटी बूस्टींग के संबंध में एक प्रपत्र तैयार किया गया है, जिसमें दिनचर्या में आवष्यक सुधार कर स्वास्थ्य को सुदृढ किया जा सकता है। औषधियों का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों का डाटा संग्रहित किया जायेगा एवं औषध प्रयोग के पश्चात् उनमें हुये परिवर्तनों का डाटा रखा जायेगा।
महाविद्यालय द्वारा संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने हेतु एक मार्गदर्षिका भी जारी की गई है। यह मार्गदर्षिका उदयपुर के मुख्य स्थानों, बाजारों, सरकारी कार्यालयों इत्यादि में लगाई जावेगी। साथ ही प्रत्येक औषध किट में भी यह मार्गदर्षिका साथ में दी जा रही है।
प्रो. दीक्षित ने यह भी बताया कि प्रथम चरण की सफलता के पश्चात् यह औषधी महाविद्यालय के चिकित्सालयों में नि:षुल्क उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है। परन्तु इसे प्राप्त करने हेतु सभी उपयोगकर्ताओं को औषध उपयोग करने के संबंध में एक सहमति पत्र एवं दवा के प्रभावों के संबंध में जानकारी उपलब्ध करानी होगी।
प्राचार्य ने जन सामान्य से सोषल डिस्टेंसिंग की पालना, अनावष्यक बाहर न निकलने, भारत सरकार, राजस्थान सरकार और जिला प्रषासन द्वारा जारी की गई गाईडलाईनों का पालना करने हेतु अपील की गई है।
मुखषोधक योग (माउथ वॉष)
भूमिका – मुंह हमारे पाचन और श्वसन पथ का प्रवेश द्वार है, ओरल केविटि में 20 बिलीयन तक बैक्टीरिया हो सकते हैं और इनमें से कुछ बैक्टीरिया एवं वायरस पाचन और श्वसन पथ से शरीर में प्रवेश करके बीमारी का कारण बन सकते हैं। उनको नियन्त्रित करने के लिए मुख का शुद्ध रहना आवश्यक है इसके लिए आयुर्वेद में आचमन, कवल एवं गण्डूष का विधान बताया गया है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए महाविद्यालय की विषेषज्ञ समीति द्वारा मुखषोधन (माउथ वॉष) के निर्माण का निर्णय गया है।
गुणकर्म – गले और मुख में जमा कफ, जीभ और दाँतो में जमा हुआ मैल एवं मुँह की दुर्गन्ध व चिपचिपापन दूर हो जाता है। मुख के छाले, गले की खराष, टोंसिल्स, जी-मिचलाना, सुस्ती, अरुचि, जुकाम, गले एवं मुख के व्रण एवं जलन में लाभ होता है।
नवरसायन योग

भूमिका -रोगप्रतिरोधक क्षमता (प्उउनदम ेलेजमउ) किसी भी वायरस के संक्रमण से बचाने में मददगाार होती है। वर्तमान मे रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कोविड़-19 के संक्रमण से बचा जा सकता है। आयुर्वेद में रसायन द्रव्यों का वर्णन किया गया है जिनके प्रयोग से रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करके कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है। रसायन द्रव्यों (प्उउनदवउवकनसंजवतध्।दजप.वगपकंदज) के प्रयोग के माध्यम से दीर्घ आयुष्य, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं उत्तम मानसिक शक्ति की वृद्धि होती है। आयुष विभाग भारत सरकार, सी.एस.आई.आर. तथा आई.सी.एम.आर. कोविड़-19 के संक्रमण से बचाव व रोगप्रतिरोधक क्षमता वर्धन में आयुर्वेद में वर्णित रसायन द्रव्यों पर अनुसंधान कार्य प्रगति पर है। आयुष विभाग भारत सरकार द्वारा निर्देशित द्रव्यों के आधार पर महाविद्यालय की विशेषज्ञ समिति की अनुशंषा पर नवरसायन योग बनाया गया है।
गुणकर्म-नवरसायन योग के घटकों में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इफ्लेमेंट्री, एंटी-बायोटिक एवं इम्यूनोमॉड्यूलेटर आदि गुण होने से यह संक्रमण को रोकने में एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक हैं, ज्वर, जुकाम, खॉंसी, गले में खराष आदि, श्वसन संस्थान से संबंधित रोग जैसे गले के रोग, सांस लेने में कठनाई आदि, मानसिक तनाव को कम करने एवं अनिद्रा में लाभकारी है, पाचन संबधित रोग जैसे भूख न लगना, अपच आदि में कार्यकारी है, विषाक्त द्रव्यों को शरीर से बाहर निकालता है।
नस्यबिन्दु तैल (नेजल ड्रॉप)

भूमिका – ड्रॉपलेटस संक्रमण के माध्यम से वायरस नाक से होते हुए श्वसन संस्थान को प्रभावित कर शरीर की रोगप्रतिरोधात्मक शक्ति को क्षीण करते हुये कास, श्वास, जुकाम व सांस लेने में कठनाई जैसे दारुण लक्षणों को उत्पन्न कर रहा है। नासा की श्लेष्मकला बहुत ही संवेदनषील होती है। श्वसन संस्थान के संक्रमण जन्य रोग नासा मार्ग से ही प्रसारित होते हैं। संक्रमण को रोकने, नासा श्लेष्मकला व श्वसन संस्थान को सुदृढ़ करने के लिए आयुर्वेद में नस्य विधि का उल्लेख किया गया है। औषध सिद्ध स्नेहों को नासामार्ग से दिया जाना नस्य कहलाता है। औषध सिद्ध तैल से नस्य करने से नासा श्लेष्म कला सुदृढ़ हो जाती है जिससे बैक्टिरिया, वायरस, धूल कणों को शरीर में प्रवेश को रोकने में मदद मिलती है। एक शोध में पाया गया है कि नस्य से नाक की श्लेष्म कला में एक परत बन जाती है जिसमें पीएम 2.5 माइक्रान तक के कण फंस जाते हैं, और सूक्ष्म वायरस और बैक्टीरिया इस परत को पार कर नाक के जरिये फेफड़ों तक नहीं पहुंच पातेे हैं। आयुष विभाग भारत सरकार ने कोरोना संक्रमण के रोकथाम के लिए नस्य किये जाने हेतु सलाह दी है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए महाविद्यालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा तिल तैल को विधि विधान से मूच्र्छित कर नस्य के रुप में प्रयोग करने के लिए अनुमोदित किया है।
गुणकर्म- टोक्सिंस या विषाक्त पदार्थो को बाहर निकाल कर रोगप्रतिरोधक शक्ति को बढता है। बार बार छींकें आना, नाक बंद होना, सर्दी जुकाम, नजला, साइनस, टोंसिल्स, सिरदर्द, मानसिक तनाव, अनिद्रा, अर्धावभेदक, बालों का झडऩा, बालों का सफेद होना आदि रोगों में लाभ करता है। यह नस्य बिन्दु प्रदुषण के दुष्प्रभावों से बचाता है।
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