अगर, एनएचएआई के दावों पर गौर करें तो उखलियात स्थित टनल में ग्रामीण क्षेत्र होने से ६ घंटे ही थ्री फेज सप्लाई मिलती है। अनुबंध के तहत संवेदक को प्रतिदिन 6 घंटे की बिजली जेनरेटर से देने का प्रावधान है। शेष 12 घंटे में सिंगल फेज सप्लाई में नाम मात्र के बल्व जलते हैं। इस बीच बिजली नहीं होने पर टनल बिल्कुल अंधेरे में रहती है।
केवल संवेदक स्तर पर जेनरेटर से 6 घंटे मुहैया कराई जाने वाली बिजली की बात करें तो एक औसत से एक घंटे की बिजली सप्लाई में जेनरेटर करीब 12 लीटर (करीब 840 रुपए का) डीजल फूंकता है। ऐसे में प्रतिदिन (6 गुणा 840 रुपए) पांच हजार 40 रुपए का डीजल प्रतिदिन जलता है। एक माह में (5040 रुपए गुणा 30 दिन) एक लाख 51 हजार 2 सौ रुपए का डीजल जला। यानी सालाना (1,51,200 रुपए गुणा 12) 18 लाख 14 हजार 4 सौ रुपए का डीजल जलता है। इसका भुगतान एनएचएआई संंबंधित संवेदक को करता है। वहीं प्राधिकरण ही संवेदक को पर्यावरण प्रदूषण के लिए प्रेरित करता है।
अगर, एनएचएआई मंथन करे तो टनल के करीब 150 बल्वों में होने वाली बिजली खपत के लिए 3 किलोवाट का सौर ऊर्जा पैनल लगवा सकता है। इससे करीब 3 सौ एलईडी बल्व को निरंतर जलाया जा सकता है। बात हैलोजन वाली पीली लाइटों की करें तो 3 किलोवाट में करीब 150 बल्व निरंतर जल सकते हैं। बिना सब्सिडी के तीन किलोवाट सौर ऊर्जा पैनल की लागत करीब सवा 3 लाख रुपए पड़ेगी। ऐसे में पैनल की सुरक्षा के लिए मासिक 15 हजार रुपए भी खर्च किए जाएं तो ये खर्च केवल 4 लाख 70 हजार रुपए पड़ता है। पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता। टनल के ऊपर ही इसका सेटअप हो सकता है। टलन के ऊपर का पहाड़ी हिस्सा राजस्व खाते में ही बोल रहा है।
३ किलोवाट का सौर ऊर्जा पैनल संबंधित बल्वों के लिए पर्याप्त है। इससे पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है। एनएचएआई तो केंद्र संचालित संस्था है। प्रयास करने पर उन्हें सब्सिडी भी मिल सकती है।
अंकुर कश्यप, सहायक अभियंता, पंडित दीनदयाल उपाध्याय विद्युतीकरण योजना
बिजली की खपत पूर्ति के लिए सौर ऊर्जा भी विकल्प हो सकता है। इस बारे में कभी विचार नहीं आया। बता रहे हैं तो जरूर सोचेंगे।
हरीशचंद्र, मैनेजर, एनएचएआई उदयपुर