READ MORE : खूबसूरत पहाडिय़ों से घिरा होगा नया पीटीएस, राजस्थान पुलिस एकेडमी के निदेशक दासोत ने किया निरीक्षण मौका था प्रभा खेतान फाउण्डेशन और कल्चरल रोन्देवू की ओर से होटल रेडिसन ब्ल्यू में सुजाता प्रसाद लिखित पुस्तक ‘अ लाइफ लाइक नो अदर’ पर खुले सत्र में चर्चा का। इसी पुस्तक से जुड़े कई संस्मरणों पर सोनल ने बड़ी बेबाकी से लेकिन संतुलित जवाब दिए। उन्होंने बताया कि महज चार वर्ष की उम्र से मणिपुरी नृत्य और सात साल की उम्र से भरतनाट्यम सीखने के बाद 17 साल की उम्र में परिजनों के विरोध के बावजूद अमरीकी प्रो. कृष्णराव और केलूचरण महापात्र से नृत्य दीक्षा ली।
सोनल ने बताया कि उनका जन्म एेसे परिवार में हुआ जहां सदैव शिक्षा और संस्कृति का अहम स्थान रहा। इनके दादा आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के साथ रहे। पिता पखावज बजाते थे। आजाद ख्याल सोनल ने शादी के बाद नृत्य की खातिर घर तक छोड़ दिया। इस फैसले से उन्हें जीवन में कई कठिनाइयां आईं।
उन्होंने बताया कि कला के शिखर काल में वर्ष 1974 में जर्मनी में भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रशिक्षण के दौरान कार हादसे में पसलियां और गले की हड्डी टूट गईं। उस घटना के बाद एक बारगी तो लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन विदेशी डॉक्टर्स की मेहनत और इच्छा
शक्ति ने मुझे अपने प्रशंसकों के बीच फिर से खड़ा कर दिया। अतीत के संस्मरण सुनाते हुए कई बार सोनल की आंखें नम जरूर हुईं लेकिन उनमें उम्मीद की चमक हर दफा दमकती महसूस होती रहीं। अंत में उन्होंने कहा कि ‘पहचान बनाने की यात्रा में हर किसी को अकेले ही संघर्ष करना पड़ता है। मैंने कभी नहीं माना कि मैं सब जानती हंू..इतना पता है अब भी बहुत कुछ जानने को बचा है।’
मीरां महोत्सव में नहीं बुलाने का मलाल
बातचीत के दौरान सोनल ने मीरां को श्रीकृष्ण की परम भक्त बताते हुए कहा कि आज भी राजकुल की वो कन्या भक्तिभाव की पराकाष्ठा का प्रतीक है। जो अकेली प्रेम पथ पर सदैव निडर बढ़ती गईं। आगे वे कहती हैं ‘अब तक नहीं बुलाया..मीरां के मान में मौका मिले तो नाट्य कथाओं की प्रस्तुति के लिए जरूर आना चाहंूगी।’ कार्यक्रम के दौरान कनिका अग्रवाल, मूमल भंडारी, रिद्धिमा दोशी, श्रद्धा मुर्डिया, शुभ सिंघवी, स्वाति अग्रवाल, मोहम्मद फुरकान खान सहित बड़ी संख्या में शहरवासी मौजूद थे।