वर्ष 2009 से 2017 तक बाल तस्करी के 218 मामले दर्ज हुए, जिनमें 956 बच्चों की तस्करी सामने आई। इसी तरह 73 महिला तस्करी के दर्ज मामलों में 94 महिलाओं की तस्करी की घटनाएं सामने आई। खास बात यह है कि वर्ष 2012 तक मामलों की संख्या कम आई थी, लेकिन इसके बाद ये घटनाएं लगातार बढ़ती गई।
कानून होने के बाद भी अपराधियों में डर नहीं होना और खाकी की नाकामी दोनों अपराध बढऩे के बड़े कारण हैं।
यूं बढ़े तस्करी के आंकड़ेे वर्ष /बाल तस्करी/ महिला तस्करी/ बालक/ बालिका/ महिला
2013 /27/ 6/ 301 /16/ 08
2014/ 23/ 16/ 17/ 13/ 17
2015/ 48/ 13/ 175/ 37/ 16
2016/ 48/ 8/ 125/ 35/ 23
2017/ 49/ 13/ 151/ 16/ 13
2013 /27/ 6/ 301 /16/ 08
2014/ 23/ 16/ 17/ 13/ 17
2015/ 48/ 13/ 175/ 37/ 16
2016/ 48/ 8/ 125/ 35/ 23
2017/ 49/ 13/ 151/ 16/ 13
हम इस मामले को लेकर बेहद गंभीर हैं। जल्द ही पूरे प्रदेश के 900 थानों के प्रभारियों के साथ बैठक की तैयारी कर रहे हैं। इसमें सभी जिलों की बाल कल्याण समितियों को भी शामिल करेंगे।
मनन चतुर्वेदी, अध्यक्ष, राज्य बाल संरक्षण आयोग ये है कानून केन्द्र सरकार की ओर से बच्चों के लैंगिक अपराधों को रोकने के लिए बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 28 और कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स एक्ट 2005 की धारा 25 के तहत कार्रवाई की जाती है।
किशोर न्याय अधिनियम (बालकों की देखरेख व संरक्षण अधिनियम 2015 की धारा) 107 के अनुसार प्रत्येक पुलिस थाने में एक बाल कल्याण अधिकारी जो सहायक उप निरीक्षक के पद के समान हो, व धारा 107 (2) के अनुसार प्रत्येक जिले की विशेष किशोर पुलिस इकाई का प्रभारी जो उप पुलिस अधीक्षक के पद के बराबर हो का प्रावधान भी किया गया है।
किशोर न्याय अधिनियम (बालकों की देखरेख व संरक्षण अधिनियम 2015 की धारा) 107 के अनुसार प्रत्येक पुलिस थाने में एक बाल कल्याण अधिकारी जो सहायक उप निरीक्षक के पद के समान हो, व धारा 107 (2) के अनुसार प्रत्येक जिले की विशेष किशोर पुलिस इकाई का प्रभारी जो उप पुलिस अधीक्षक के पद के बराबर हो का प्रावधान भी किया गया है।
नो योर स्टुडेन्ट- नो योर पुलिस (केवायएस-केवायपी) बालिका शिक्षण संस्थानों व पुलिस के बीच समन्वय व सहायोग के लिए यह योजना चलाई जा रही है।