न्यायालय के अध्यक्ष के.बी.कट्टा, सदस्य सुशील कोठारी व ब्रजेन्द्र सेठ ने सुनवाई के बाद माना कि चिकित्सकीय लापरवाही मानते हुए लिखा कि बंदी को जब अस्पताल में भर्ती करवाया गया तब तक उसकी हालत गंभीर हो गई। यदि जेल चिकित्साधिकारी ने बंदी की बीमारी का सही डायग्नोसिस कर त्वरित इलाज किया होता तो उसकी हालत गम्भीर नहीं होती, उसे मौत से अवश्य बचाया जा सकता था।
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उत्तरदायी मानते हुए परिवादी को दो माह में 5 लाख रुपए देने के आदेश दिए। अगर इस अवधि में सरकार ने भुगतान नहीं किया तो उन्हें अदायगी तक 10 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा। सरकार ब्याज देने की स्थिति में विभागीय जांच कर उत्तरदायी दोषी अधिकारी व कर्मचारी से राशि वसूल कर राजकोष में जमा करवा सकेंगे।
बचाया जा सकता था बंदी को
न्यायालय ने माना कि बंदी को अस्पताल में तब भर्ती कराया गया जब उसकी हालत क्रिटिकल होकर गंभीर हो गई। यदि जेल चिकित्साधिकारी द्वारा बंदी की बीमारी का सही डायग्नोसिस कर त्वरित इलाज किया गया होता तो उसकी हालत क्रिटिकल नहीं होती, उसे मौत से अवश्य बचाया जा सकता था। बंदी के बीमार होने पर जेल नियमावली के अधीन उसके परिजनों को सूचना भी नहीं दी गई। जेल चिकित्साधिकारी ने बंदी को दिए गए उपचार व दी गई दवाइयों से संबंधित कोई दस्तावेज न्यायालय में पेश नहीं किया।
बाठेड़ा निवासी रामा पुत्र गोपा रावत व उसकी पत्नी कालीबाई ने राजस्थान राज्य जरिये जिला कलक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक, उदयपुर केन्द्रीय कारागृह अधीक्षक व एमबी चिकित्सालय अधीक्षक के खिलाफ अधिवक्ता पराग अग्रवाल के मार्फत परिवाद पेश किया था। बताया कि उसके पुत्र भूपेन्द्र रावत को खेरोदा थाना पुुलिस ने दुष्कर्म व पॉक्सो एक्ट में गिरफ्तार कर उसी दिन केन्द्रीय कारागृह में भेज दिया। गिरफ्तारी के समय उसके चेहरे पर आई चोटों का ही प्रतिवेदन बनाया गया।
जेल में 23 मई को भूपेन्द्र की तबीयत खराब होने के कारण पुलिस गार्ड से उसे राजकीय महाराणा भूपाल चिकित्सालय में भर्ती करवाया गया। उपचार के दौरान अगले दिन उसकी मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि जेल अधिकारियों ने भूपेन्द्र का सही इलाज नहीं कर कोई दवाई नहीं दी। भूपेन्द्र की मौत व पोस्टमार्टम के बाद उन्हें सूचित किया गया। उसके इलाज व पोस्टमार्टम से संबंधित दस्तावेज उन्हें मांगें जाने पर भी उपलब्ध नहीं करवाए। उसे 4-5 दिन से उसे उल्टी व डायरिया हो रहा था लेकिन उसका इलाज से ठीक से नहीं किया गया। उसकी मृत्यु पर संबंधित विभाग जिम्मेदार है।
जवाब में कहा, एक्ट ऑफ गॉड से हुई मौत
विपक्षियों की ओर से अधिवक्ता ने इलाज में लापरवाही व उपेक्षा नहीं होना बताकर मौत एक्ट ऑफ गॉड में बताते हुए आवेदन खारिज करने के लिए कहा। न्यायालय ने माना कि एमबी चिकित्सालय में भर्ती कराते समय जेल चिकित्साधिकारी डॉ.अरविंद मेहता ने बंदी के उल्टी दस्त, डायरिया होने की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती होना बताया जबकि डॉ.रमेश जोशी ने बंदी को भर्ती कराए जाने का कारण सिरदर्द व चक्कर आने की शिकायत बताई। दोनों चिकित्सकों के मध्य कोई सामंजस्य नहीं है। पोस्टमार्टम में उसकी मौत का कारण उल्टी दस्त व डायरिया नहीं बताकर तिल्ली फटना बताया।