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उदयपुर

इंजीनियरों की फौज, फिर भी डीपीआर का खर्चा

कई डीपीआर Detailed Project report बनी, लेकिन नहीं आई काम

उदयपुरDec 13, 2019 / 09:45 am

Mukesh Hingar

महापौर के दावेदार उदयपुर के चुनावी मैदान में 59 वार्डों से लड़ सकते चुनाव

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मुकेश हिंगड़ / उदयपुर. सरकारी सिस्टम में डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) Detailed Project Report बनाने में उदयपुर पीछे नहीं है। शहरी विकास के लिए पहले डीपीआर बनाने की बजाय स्वयं इंजीनियर रिपोर्ट तैयार करते थे लेकिन अब सर्वे के यह काम बाहर से करवाया जाता है। इंजीनियरों की फौज नगर निगम, यूआईटी व अन्य विभागों में है लेकिन डीपीआर बाहरी निजी एजेंसियों से बनाई जा रही है। इस पर लाखों रुपए खर्च किए जाते है। कुछ डीपीआर तो बन गई लेकिन उन पर सरकारी विभागों में काम नहीं हुआ और डीपीआर बनाने का पैसा जरूर खर्च हुआ है।
पिछले वर्षों में उदयपुर की झीलों को प्रदूषण मुक्त करने, झीलों में पानी लाने व सीवेज के समाधान को लेकर अलग-अलग सर्वे किए गए लेकिन उसके बावजूद आज भी यह समस्या यथावत सामने है। झीलों व तालाबों की कुछ डीपीआर बनवा तो दी गई लेकिन उस पर प्रोजेक्ट सरकार ने मंजूर नहीं किया तो डीपीआर का पैसा पानी में बह गया।

जलाशयों की डीपीआर नामंजूर हो गई
उदयपुर में उदयसागर, गोवर्धनसागर के साथ ही करीब 11 जलाशयों को प्रदूषण मुक्त करने की बजाय सौन्द्रर्यकरण डीपीआर तैयार कर दी। केन्द्र सरकार ने प्रोजेक्ट इसलिए नामंजूर कर दिया प्रदूषण मुक्त करने का उद्देश्य ही भूल गए थे। झीलों के जानकारी महेश शर्मा बताते है कि डायलाब तालाब का 15 करोड़, बांसवाड़ा के गेप सागर 40.22करोड़, राजसमंद झील 38.10 करोड़ , काइलाणा झील पर 17.05 करोड़ , जोधपुर के गड़सीसर झील 35.20, जैसलमेर के जेतसागर 98 करोड़, बूंदी के गुंडोलाव तालाब पर 42 करोड़, सांभर वेटलैंड पर 70 करोड़, उदयसागर पर 56.72 करोड़, गोवर्धन सागर पर 10.04 करोड़ के प्रोजेक्ट को केन्द्र सरकार ने निरस्त कर दिया। इसमें डीपीआर बनाने केलिए तो पैसा खर्च हो गया था।

आयड़ व सीवरेज की डीपीआर भी बनाई

इसी प्रकार वर्ष 199 में नीरी की ओर से 17 लाख रुपए की लागत से पूरे शहर में सीवरेज प्लान बनाया गया था,वह प्लान भी वर्ष 2031 की जनसंख्या व मलजल निस्तारण को ध्यान में रखकर बनाया गया था लेकिन यह प्लान अभी धूल खा रहा है। आयड़ नदी के लिए डीपीआर बनाई गई, वेबकॉस को 70 लाख रुपए दिए गए और आज आयड़ जस की तस है।
इंजीनियरों ने तब भी बनाए बड़े प्रोजेक्ट
राज्य में बेहतरीन अभियंताओं व नियोजनकर्ताओं की बड़ी संख्या में फौज है। प्रदेश में 1960 के दशक में बने माही बजाज सागर परियोजना, जवाहर सागर, राणा प्रताप सागर, मेजा, सोम कागदर, गंभीरी परियोजनाएं सरकारी इंजीनियरों ने ही बनाई है और पिछले डेढ़ दशक से प्रोजेक्ट की सर्वे व रिपोर्ट बाहरी एजेंसियों से पैसा देकर बनाई जा रही है।
……
एक्सपर्ट व्यू…

डीपीआर बनाना सरकार के पैसे का दुरूपयोग मात्र है। जो सर्वे रिपोर्ट आती है उसमें भी कई तकनीकी पहलू नहीं होते है। बाद में कार्यकारी एजेंसी को परेशानी होती है, कई बार तो किसी प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल जाती है तब डीपीआर से हटकर कार्यकारी एजेंसी अपना दीमाग लगाकर उसमें जो कमियां होती है उसे ठीक करती है। पहले सर्वे की अलग से विंग भी होती थी लेकिन अब बाहरी निजी एजेंसियों से डीपीआर बनाने के काम ही होते है, इससे सरकार को राजस्व हानि भी होती है।
– पीयुष जोशी, सेवानिवृत सहायक अभियंता (सिंचाई विभाग)


डीपीआर के नाम पर सरकारी धन बर्बाद किया जा रहा है। कई डीपीआर उदयपुर में बना दी गई, पैसा खर्च कर दिया लेकिन प्रोजेक्ट साकार नहीं हुए। सीधी बात है कि सरकारी धन सिर्फ डीपीआर बनाने में ही खर्च कर लिया है। नीरी ने एक डीपीआर बनाई जो आज भी प्रन्यास कार्यालय में धूल खा रहे है। पिछले 20-25 सालों में उदयपुर में दर्जनों डीपीआर व रिपोर्ट बनवाई गई लेकिन उनके परिणाम नहीं आए, वे वहां से आगे नहीं बढ़ी। यहां तक की एक साथ दो विभागों ने एक ही विषय पर अलग-अलग डीपीआर तक बनवा दी।
– महेश शर्मा, झीलों के जानकार

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