पंचायत मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित बक्सा की नाल में सडक़, बिजली, पेयजल, शिक्षा, चिकित्सा आदि मूलभूत सुविधाओं से वंचित करीब 30 परिवार रहते हैं। इसमें से एक ऐसा परिवार है, जहां घर के अधिकतर सदस्य दिव्यांग हैं।
दिव्यांग रमेश एवं बच्चों को छोड़ नाते गई पत्नी दिव्यांग रमेश (40) पुत्र जोरा पारगी बचपन से अपनी आंखों से देख नहीं सकता है। उसके चार बच्चे सामी (8), बिकली (6), राहुल (5)एवं मिथुन (2) है। रमेश के साथ बच्चों के भी दिव्यांग होने से पत्नी बबी चार वर्ष पूर्व परिवार को अपने हाल में छोडकऱ नाते चली गई जिससे दिव्यांग बच्चों पर दुविधाओं का पहाड़ सा टूट गया। रमेश ने बताया कि बबी छोटी-मोटी मजदूरी कर घर चलाती थी। उसके चले जाने के बाद राशन का गेहूं भी मिलना बंद हो गया है। परिवार के अन्य सदस्यों के दिव्यांग होने एवं उनके फिंगर प्रिंट का मिलान नहीं होने से आधार कार्ड नहीं बन पाए हैं।
न आवास मिले, ना ही पेंशन
दिव्यांग रमेश अपने परिवार के साथ रोटी के जुगाड़ के लिए दर-दर ठोकरे खा रहा, लेकिन किसी राशन अधिकारी का दिल नहीं पसीजा। दिव्यांग रमेश जंगल से लकडिय़ां लाकर उन्हें बेचकर अपना गुजारा कर रहा है। उसे सरकार से किसी तरह की योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। दिव्यांग होने से बच्चे भी स्कूल नहीं जा रहे है। आवास नहीं होने के कारण परिवार कड़ाके सर्दी में भी खुले में रात बिताने को मजबूर है।
बुजुर्ग दादी कर रही बच्चों की देखभाल
रमेश की बुजुर्ग मां जेठू मजदूरी कर एवं अपनी विधवा पेंशन राशि से दिव्यांग परिवार का भरण-पोषण कर रही है। जेठू ने बताया कि इतने बड़े परिवार का विधवा पेंशन राशि से भरण पोषण में मुश्किल हो रही है।
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परिवार के दिव्यांग सदस्यों के फिंगरप्रिंट मिलान के अभाव में आधार अपडेट नहीं हो रहा है जिससे उन्हें राशन सामग्री नहीं मिल रही है। कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था कर उन्हें लाभ दे सकते हैं।
शंकरलाल पारगी, सरपंच ग्राम पंचायत सड़ा