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डिस्पेंसरी है या कबाड़खाना…यही कहेंगे जब देखेंगे उदयपुर की इस डिस्‍पेंसरी के हाल, video

locationउदयपुरPublished: Oct 26, 2017 05:37:19 pm

Submitted by:

Sushil Kumar Singh

डिस्पेंसरी में नहीं लगता फिनायल का पोंछा – चिकित्सक लिख रहे हैं बाजार की दवाइयां – बिना जांचें परखे तैयार होती है मरीजों की स्लाइड रिपोर्ट

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उदयपुर . शहर के मध्य सूरजपोल क्षेत्र स्थित अमल का कांटा डिस्पेंसरी हकीकत में उपचार के नाम पर लोगों को बीमार करने की वजह बनी हुई है। ड्रिप चढ़ाने वाले मरीज कक्ष में वर्षों पुराना भंगार जमा है। दीवारों, टेबलों, खिड़कियों और जांच उपकरणों पर महीनों पुरानी धूल जमा है। बरसात बाद भी इस डिस्पेंसरी में रंगाई-पुताई का जोखिम नहीं उठाया गया। खुद चिकित्सक कक्ष की बदहाली मरीजों को विचलित करने का कारण बना हुआ है। बात यहीं खत्म नहीं होती, डिस्पेंसरी की अव्यवस्था यह है कि चिकित्सा विभाग ने सीनियर मेडिकल ऑफिसर को अधीनस्थ लगाकर जूनियर डॉक्टर को डिस्पेंसरी प्रभारी को दायित्व सौंपा हुआ है।
एेसा ही हाल यहां संचालित स्टोर का है। स्वाइन फ्लू जैसे रोगों की दवाइयां सामने रखकर अवधिपार की जा रही हैं। प्रयोगशाला में माइक्रोसकॉप सहित अन्य यंत्रों पर बीते एक साल से धूल साफ नहीं की गई है। तंग कमरे में लगे कम्प्यूटर का हाल इसके लंबे समय से उपयोग नहीं होने वाले सच को बयां करती है। सरकारी निर्देशों की अवज्ञा कर चिकित्सक सेवानिवृत पेंशनर्स को बाजार की महंगी दवाइयां लिख रहे हैं। दूसरी ओर कड़वा सच यह है कि आंखों के सामने दिखती सी गंदगी को लेकर मुख्यालय पर पर बैठने वाले चिकित्सा विभाग के मुखिया मौन साधे हुए हैं। पूर्व में भी इस डिस्पेंसरी में खामियों को लेकर हुई शिकायतों पर विभाग ने लीपापोती कर फाइलें बंद कर दी। कैसा स्वच्छता अभियान चिकित्सा विभाग की हकीकत यह है कि केंद्र के स्वच्छता अभियान को लेकर कुछ दिन पहले ही विभाग ने राजकीय चिकित्सा संस्थानों में साफ-सफाई का दावा किया था। इस मामले में दूरदराज के चिकित्सा संस्थान का जिला कलक्टर ने भी दौराकर सीएमएचओ की प्रशंसा की थी। लेकिन, नाक के नीचे संचालित डिस्पेंसरी में गंदगी, मकड़ी के जाले, वर्षों से जमा भंगार, क्षतिग्रस्त बैठक व्यवस्था, आधे समय नहीं रूकने वाले कम्प्यूटर ऑपरेटर एवं लैब टेक्निशियन और मरीज के प्रति बरती जाने वाली उदासीनता को लेकर हर स्तर पर सरकार को केवल गुमराह किया जा रहा है।
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माइक्रोसकॉप पर धूल की चादर

डिस्पेंसरी रिकॉर्ड की बात करें तो प्रतिदिन करीब 15 मरीजों की स्वास्थ्य नमूना जांच यहां की विशेष लैब में टेक्निशयन के माध्यम से की जाती है। लेकिन, पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि मौके पर मौजूद माइक्रोसकॉप पर धूल की परतें चढ़ी हुई हैं। पूछताछ पर हैरान दिखे लैब टेक्निशियन ने आनन-फानन में हाथ से धूल हटाने में देर नहीं लगाई। लेकिन, लैब की गंदगी और अव्यवस्था कहती है कि यहां बिना जांचें मरीजों को स्लाइड सहित अन्य रिपोर्ट परोस दी जाती है। कायदे से महंगे यंत्र पर उपयोग नहीं लेने के दौरान कपड़ा ढका होना चाहिए। रजिस्टर में छुट्टी नहीं जूनियर डिस्पेंसरी प्रभारी के साथ वरिष्ठ चिकित्सक कक्ष मौके पर खाली मिला। पूछताछ पर प्रभारी ने बताया कि वरिष्ठ मेडिकल ऑफिसर अवकाश पर हैं, लेकिन जूनियर होने के कारण प्रभारी चिकित्सा अधिकारी वरिष्ठ डॉक्टर की हस्ताक्षर पंजिका पर सीएल और अवकाश लिखने का साहस नहीं जुटा पाया। संविदा कम्प्यूटर ऑपरेटर की भी यहां अनुपस्थिति दर्ज नहीं थी। इधर, सामने स्थित उपभोक्ता थोक भंडार की रिपोर्ट में सामने आया कि सभी पेंशनर्स को चिकित्सक की ओर से ब्रांडेड कंपनी की दवाइयां लिखी जा रही हैं। कई बार लिखा डिस्पेंसरी में जमा भंगार को हटाने के लिए एक साल से सीएमएचओ कार्यालय से पत्र व्यवहार कर रहा हूं। नतीजा अब तक भंगार नहीं हट सका है।
सफाई कर्मचारी को पैरालिसिस हुआ है। इसलिए कुछ व्यवस्था खराब हो रखी है। मरीज ब्रांडेड दवाइयों की बात कहते हैं। तब ही यह दवाइयां लिखता हूं।

डॉ. सुनील सुराणा, प्रभारी, सूरजपोल डिस्पेंसरी

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