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स्लग: डॉक्टरी: विदेशी डिग्री भारत में फेल न मरीज देख पाएंगे और न ही प्रेक्टिस कर पाएंगे

locationउदयपुरPublished: Dec 11, 2019 11:20:58 am

Submitted by:

bhuvanesh pandya

एमसीआई की परीक्षा पास नहीं कर पा रहे हैं विदेशी डिग्री वाले
उदयपुर में भी कई ऐसे परिवार जो लगा चुके हैं

स्लग: डॉक्टरी: विदेशी डिग्री भारत में फेल न मरीज देख पाएंगे और न ही प्रेक्टिस कर पाएंगे

स्लग: डॉक्टरी: विदेशी डिग्री भारत में फेल न मरीज देख पाएंगे और न ही प्रेक्टिस कर पाएंगे

भुवनेश पण्ड्या

उदयपुर. वे डॉक्टर बन गए, उन्हें एप्रेन भी मिल गया, गले में स्थेटेस्कॉप भी लटक गया, लेकिन ये विदेशी डॉक्टर देश में आते ही फेल हो गए। यानी अब वे यहां न तो मरीज देख पाएंगे और न ही प्रेक्टिस कर पाएंगे। ये व्यथा ऐसे परिवारों की है, जिन्होंने अपने बच्चों को चिकित्सक बनाने के लिए लाखों रुपए खर्च दिए, लेकिन उनकी उम्मीदें यहां पूरी नहीं हो पाई। भले ही उनके पास विदेशी चिकित्सक का तमगा है, लेकिन ये कागज देश में आते ही फेल हो रहे हैं। बीते चार सालों में विदेशों के 100 कॉलेजों के 538 छात्र स्क्रीनिंग टेस्ट में फेल हो गए हैं।

यहां जाते है डिग्री के लिएदेश में बड़े पैमाने पर छात्र एमबीबीएस या उसके समकक्ष डिग्री हासिल करने रूस, पूर्व सोवियत संघ के देशों, यूरोप, चीन, अफ गानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, नेपाल और बांग्लादेश जाते हैं। उन छात्रों को डिग्री हासिल करने के बाद भारत में प्रैक्टिस शुरू करने के लिए एमसीआई की स्क्रीनिंग टेस्ट पास करनी जरूरी होती है, लेकिन 2015 से 2018 के आंकड़े बताते हैं कि बीते 4 सालों में 100 से ज्यादा विदेशी मेडिकल कॉलेजों से पढ़े 80 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने स्क्रीनिंग टेस्ट पास नहीं किया।
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एमसीआई की परीक्षा में हो रहे हैं फेलएमसीआई की मानें तो बीते चार चालों में विदेशों से पढ़कर 15 से 20 प्रतिशत छात्र ही एमसीआई के टेस्ट पास कर पाए हैं। विदेशों में कई ऐसे मेडिकल कॉलेज हैं, जहां से डिग्री लेकर आया एक भी छात्र अब तक स्क्रीनिंग टेस्ट पास नहीं कर पाया है।

-ऐसे समझे:- ज्यादातर वे विश्वविद्यालय और कॉलेज हैं, जहां मेडिकल की शिक्षा दूसरी भाषाओं में दी जाती है, वो छात्र ज्यादातर भारत में आयोजित डॉक्टरी परीक्षा में फेल हो जाते हैं। जब डॉक्टरी डिग्री लेकर डॉक्टर भारत लौटते हैं तो उन्हें प्रैक्टिस शुरू करने के लिए एमसीआई की परीक्षा को पास करना अनिवार्य होता है।- पूर्व सोवियत देशों, यूरोप और चीन के मेडिकल विश्वविद्यालय और कॉलेजों में ऐसे छात्र दाखिला ले लेते हैं, जहां परीक्षा अनिवार्य नहीं होती है। यूरोप और अन्य देशों से भी पढ़ कर आ रहे छात्र स्क्रीनिंग टेस्ट में फेल हो रहे हैं। नीदरलैंड जैसे देशों से पढ़ कर आ रहे छात्र भी फेल हो रहे हैं

-उदयपुर में भी कई परिवारशहर में करीब 25 से अधिक व प्रदेश में हजारों ऐसे परिवार हैं, जिनके बच्चे या तो डॉक्टरी कर रहे हैं या वे डॉक्टी कर आ चुके हैं।
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भारत: गत चार वर्षों के हाल- नीदरलैंड से पढ़कर आए 28 में से सिर्फ 3 छात्र स्क्रीनिंग की परीक्षा में पास हुए।- जर्मनी से पढ़ कर आए 5 छात्रों में से एक ने भी परीक्षा पास नहीं की।- पाकिस्तान से पढ़कर आए 9 छात्रों में से सिर्फ एक ने परीक्षा पास की।- ब्रिटेन से पढ़कर आया एक छात्र भी फेल हो गया।- आर्मेनिया से पढ़कर आए 1096 छात्रों में से सिर्फ 237 ही पास कर पाए।- अजरबैजान से पढ़कर आए 123 छात्रों में से सिर्फ 5 ही पास हुए।- बांग्लादेश के कई विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्रों ने औसत प्रदर्शन किया।
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-बीते चार सालों के दौरान कई अभ्यर्थी एक से ज्यादा बार टेस्ट दे चुके हैं, लेकिन वे अब तक एमसीआई की परीक्षा में नहीं निकल पाए हैं। एमसीआई ने एक सूची जारी की है, जिसमें उन कालेजों और देश के नाम दिए हैं। एमसीआई का कहना है कि इसको साझा करने का मतलब यह बताना है कि जो छात्र विदेशों के इन कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के लिए सोच रहे हैं, वह रिजल्ट सामने आने के बाद सतर्क हो जाएं।

-नियमानुसार जो पढ़ाई होनी चाहिए वह बाहर नहीं होती है। कुछ विद्यार्थियों से चर्चा में सामने आया कि यहां जो प्रेक्टिकल होते हैं, वे उस संख्या में वहां नहीं होते। इसके कई कारण हैं। जो यहां डॉक्टरी में प्रवेश के लिए सफल नहीं होते, वे वहां जाते हैं, साथ ही यहां के निजी कॉलेजों में फीस काफी अधिक है। ऐसे में सस्ती डॉक्टरी पढऩे के लिए लोग बच्चों को विदेश भेजते हैं। यदि स्क्रीनिंग टेस्ट पास नहीं होता तो वह बच्चा यहां आकर एक वर्ष की इंटर्नशिप नहीं कर सकता।डॉ ललित रेगर, उपाचार्य, आरएनटी मेडिकल कॉलेज
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