ऐसे में ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों की हालत खराब रही। कोई मरीज सर्दी बुखार में कांपता हुआ डॉक्टर्स को ताकता रहा तो कोई बच्चे के दर्द पर आंसू बहाता रहा। पर हड़ताली डॉक्टर्स का दिल बिल्कुल भी नहीं पसीजा। अन्य राजकीय चिकित्सालयों के हाल भी ऐसे ही रहे। इसमें कोई शक नहीं की हड़ताल के बाद भी चिकित्सालय पहुँचने वाले लोगों में गरीब तबके के लोग ज्यादा हैं या फिर ऐसे लोग शामिल हैं जो कि हड़ताल से वाकिफ नहीं ओर दूरदराज से उपचार को लेकर चले आ रहे हैं। डॉक्टर्स अब किसी मरीज पर तरस नहीं खा रहे या कहें कि मजबूरी है कि गंभीर रोगों को भी वार्ड में भर्ती करने में सोचा जा रहा है। डॉक्टर्स ऐसे तक कर रहे हैं जैसे उपचार का खर्चा उनके माथे आने वाला है। ड्यूटी वाले डॉक्टर्स मीटिंग पर हैं तो हड़ताली डॉक्टर्स पुलिस से छिपते फिर रहे हैं। दूर गांव के ढाबों में कई दिनों से छिपे हैं। इधर उनके परिवार की भी हालत खराब हो रखी है।
READ MORE: Doctors Strike: बेरहम चिकित्सक, बेबस मरीज, पल-पल भारी पड़ रही हड़़ताल सेवारत चिकित्सकों की हड़ताल के बाद मांगों के समर्थन में उतरे रेजिडेंट यूनियन अब सरकार की सख्ती से तनाव में हैं। लोगों को उपचार से वंचित रखने वाले ये रेजिडेंट अब लोगों से अपील कर सहयोग की मांग कर रहे है। इस आशा से की परेशान होने वाली जनता उनका सरकार के विरोध में साथ देगी। अब देखना है कि रेजिडेंट यूनियन अध्यक्ष की आवाज सरकार और आम रोगियों और जनता को कितना असर होता है।