उदयपुर

दवाओं की आड़ में फल-फूल रहा नशे का कारोबार

– दो वर्ष में 10 से ज्यादा मामले पकडे़

उदयपुरJun 24, 2022 / 08:23 am

bhuvanesh pandya

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जिले में दवाइयों की आड़ में नशे का कारोबार तेजी से फल फूल रहा है। ऐसी दवाएं, जो बिना बिल के खरीदी या बेची नहीं जा सकती है, या जिन पर कई प्रकार की पाबंदिया हैं, उन्हें यहां कानून की ताक में रख बेधड़क बेचा-खरीदा जा रहा है। कुछ मामले तो नियमित जांच के दौरान औषधि विभाग की पकड़ में आ जाते हैं, तो कई मामले ऐसे होते हैं, जिसकी किसी को कानों कान खबर नहीं होती है। बीते दो वर्ष में इस तरह की नशे की दवाइयां बिना नियमों से रखने, बेचने, खरीदने के दस से ज्यादा मामले पकड़े गए हैं।
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ये है नशे वाली पाबंदियों की दवाइयां- इन दवाइयों को बिना नियमों से नहीं रखा जा सकता है, नशेडि़यों को इन दवाओं की अनियंत्रित जरूरत होती है। यदि कभी चिकित्सक लिख भी देता है तो वह लगातार इस एक पर्ची पर नहीं ले पाता है, ऐसे में वह कालाबाजारी के जरिए इन दवाओं के अधिक दाम चुकाकर खरीदता है। कई ऐसे युवा भी इन दवाओं की गिरफ्त में हैं, जो घर वालों के सामने ही इन दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन किसी को इनके नशे के इरादे की भनक तक नहीं लगती। विभाग या पुलिस द्वारा पकडे़ जाने पर स्मॉल क्वांटिटी व लार्ज यानी कॉर्मशियल क्वांटिटी में मामला दर्ज होता है।
– ट्रामाडोल- दर्द निवारक

– एल्प्राजोलम- एंटीडिप्रेसेंट- कोडिन- खांसी

– क्लोनाजिपाम- एंटीडिप्रेसेंट- डाइफिनोक्सिलेट- एंटीडिप्रेसेंट

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ऐसे पकड़े मामले….

केस एक- – एक एमआर बिना बिल की दवाइयां लाकर बेचते हुए धरा गया। ट्रामाडोल व एल्प्राजोलम के चार-चार डिब्बे टेबलेट कैप्सूल के पकडे़ गए। इसे एनडीपीएस एक्ट धारा 8/22 में मामला दर्ज किया गया। इसमें कॉमर्शियल क्वांटिटी में मामला दर्ज किया गया।
केस 2- गोवर्धन विलास में कोडिन पकड़ी गई थी। एक ट्रांसपोर्ट से मेडिकल की दुकान के नाम से 1200 बोतल भेजी गई थी, लेकिन वह दवाइयां उसकी नहीं थी, मेडिकल व्यवसायी स्वयं ने ही इसकी जानकारी औषधि नियंत्रण विभाग में दी थी, इसमें मामला दर्ज किया गया।
केस 3- 2020 में संभवनाथ मेडिकल पर ट्रामाडोल व एल्प्राजोलम दवाइयां मिली थी, जिनके बिल नहीं थे। ड्रग एंड कोस्मेटिक एक्ट 1940 के तहत कार्रवाई की गई। लाइसेंस निरस्त किया।

केस 4- 2020 में आरआर मेडिकल पर बिना बिल के एल्प्राजोलम दवाइयां मिली थी। उसमें ड्रग एंड कोस्मेटिक एक्ट 1940 में मामला दर्ज कर लाइसेंस निरस्त किया।
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गांव भी अछूते नहींगांव भी इस पूरे नशे के कारोबार से अछूते नहीं है। खास बात यह है कि औषधि नियंत्रण विभाग के पास चार औषधि नियंत्रण अधिकारी है, जबकि एक सहायक औषधि नियंत्रक है। ऐसे में पूरे जिले पर नजर, जांच व कार्रवाई संभव नहीं हो पाती। गत वर्षों में वल्लभनगर, खेरोदा, मोडी में भी नशे की दवाइयां पकड़ी जा चुकी है। गांवों में ज्यादातर कोडि की दवा की खरीद फरोख्त बेरोकटोक है।
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ये है अपराध

– बिना बिल के दवाइयां रखना व बेचना- बिना लाइसेंस के दवाइयां बेचना

– बिना लाइसेंस के दवाइयां स्टोर करना,बेचना व खरीदना- नशे की दवाइयां बिना बिल व लाइसेंस के है तो एनडीपीएस में मामला दर्ज होता है। यह गैर जमानती अपराध की श्रेणी में है।
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