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दोषपूर्ण नीति मरीज पर भारी, निजी अस्पतालों पर मेहरबान हो रही गहलोत सरकार !

locationउदयपुरPublished: Apr 04, 2019 02:38:54 pm

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भुवनेश पण्ड्या/उदयपुर . सरकारी चिकित्सालयों में एंजियोप्लास्टी को लेकर राज्य सरकार की दोषपूर्ण नीति से जहां रोगियों को बेहतर उपचार नहीं मिल पा रहा है, वहीं यह नीति निजी चिकित्सालयों में उपचार को प्रोत्साहन दे रही है। सरकारी चिकित्सालय में महज 12 हजार रुपए का स्टेंट लगाया जा रहा है। यदि रोगी उससे बेहतर स्टेंट लगवाना चाहता है तो उसे अंतर राशि का भुगतान करना पड़ता है। दूसरी ओर निजी चिकित्सालय में इस उपचार के लिए 50 हजार रुपए का पुनर्भरण किया जा रहा है। सरकार की भामाशाह योजना में एंजियोप्लास्टी में जो स्टेंट लगाया जा रहा है, वह महज 12 हजार 300 रुपए का है, जबकि बाजार में उससे बेहतर एवं महंगे स्टेंट उपलब्ध हैं। महाराणा भूपाल हॉस्पिटल में दो प्रकार से स्टेंट खरीदे जा रहे हैं। भामाशाह योजना के लिए स्टेंट व अन्य साधन आरएमआरएस यानी राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी के माध्यम से खरीदे जा रहे हैं। मरीज यदि अपने स्तर पर कोई अन्य स्टेंट खरीदना चाहे तो उसके लिए लाइफ लाइन से स्टेंट व अन्य साधन खरीदे जाते हैं। हालांकि इसका खर्च मरीज को ही चुकाना होता है।
दूसरी ओर, भामाशाह योजना के माध्यम से जो प्राइवेट हॉस्पिटल में उपचार करवाने पहुंचते हैं, ऐसे हॉस्पिटलों को सरकार पुनर्भरण के तौर पर प्रति मरीज एंजियोप्लास्टी के 52 से 55 हजार रुपए देती है। इतनी राशि में तो सरकारी हॉस्पिटल में भी बेहतर स्टेंट लगाया जा सकता है जिसकी कीमत करीब 30 हजार रुपए है।
गुणवत्ता में होता है अन्तर
हृदय रोग विशेषज्ञ व विभागाध्यक्ष डॉ मुकेश शर्मा का कहना है कि बाजार में 12,300 से लेकर 30 हजार तक के स्टेंट उपलब्ध हैं। जो महंगा होता है उसकी गुणवत्ता अच्छी होती है। कई बार मरीज को पूछने पर वह स्वयं ही बेहतर स्टेंट लगाने की कहते हैं। हालांकि योजना में जिसकी स्वीकृति है, वही लगाना होता है।
यह है लाइफ लाइन में रखने का तरीका
लाइफ लाइन में जो महंगे स्टेंट या अन्य साधन मंगवाए जाते हैं, उन्हें सीधे तौर पर किसी कंपनी से खरीदा नहीं जाता, बल्कि इसे कंपनी से शर्तों पर लिया जाता है कि मरीज आने पर उसका इस्तेमाल किया जाएगा, यदि मरीज नहीं आता है तो उसे कंपनी को एक्सपायर होने से पहले वापस लेना होगा। स्टेंट शरीर में जीवन भर चलता है, लेकिन शरीर में लगने से पहले निर्माण तिथि से तीन या चार साल की अवधि निकल जाती है।
हमें योजना में जो स्वीकृति मिली है, उसके आधार पर ही काम किया जा सकता है। योजना में तय मापदंडों के अनुरूप ही चला जा सकता है। बाजार के अन्य महंगे साधन मरीज अपने स्तर पर लगा सकता है। लाइफ लाइन के लिए मंगवाए जाने वाले साधन खरीदे नहीं जाते हैं, ताकि सरकारी राशि का नुकसान नहीं हो। – डॉ लाखन पोसवाल, अधीक्षक महाराणा भूपाल हॉस्पिटल उदयपुर
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