हर वर्ष गर्मी में रीत जाता है
तालाब का निर्माण 1965 में हुआ था। इसके बाद सिर्फ एक बार वर्ष 1991 में मरम्मत हुई थी। 30 वर्ष बीतने के बाद एक भी बार मरम्मत नहीं होने से तालाब में जगह जगह रिसाव हो रहा हैं। गर्मी आते आते हर वर्ष तालाब खाली हो जाता है। अभी तालाब में मवेशियों के पीने जितना भी पानी नहीं है।
तालाब का निर्माण 1965 में हुआ था। इसके बाद सिर्फ एक बार वर्ष 1991 में मरम्मत हुई थी। 30 वर्ष बीतने के बाद एक भी बार मरम्मत नहीं होने से तालाब में जगह जगह रिसाव हो रहा हैं। गर्मी आते आते हर वर्ष तालाब खाली हो जाता है। अभी तालाब में मवेशियों के पीने जितना भी पानी नहीं है।
नहर हो गई क्षतिग्रस्त
पेयजल व सिंचाई के मकसद से करीब 55 वर्ष पूर्व झाड़ोल बांध का निर्माण कराया गया। इसके अलावा दो नहरों का निर्माण भी कराया गया। जिसमें दाईं नहर का पानी भीलवाड़ा, हाथीकाड़, वेलनिया तक जाता था। 10 वर्ष से नहर क्षतिग्रस्त होने से वेलनिया तक पानी नहीं पहुंचने से सैकड़ों बीघा जमीन से रबी की फसल उत्पादित नहीं हो पा रही है। तालाब से मात्र 1 किलोमीटर तक ही पानी की सप्लाई वर्तमान में की जा रही है। नहर कई जगह बीच-बीच में क्षतिग्रस्त हो चुकी है।
पेयजल व सिंचाई के मकसद से करीब 55 वर्ष पूर्व झाड़ोल बांध का निर्माण कराया गया। इसके अलावा दो नहरों का निर्माण भी कराया गया। जिसमें दाईं नहर का पानी भीलवाड़ा, हाथीकाड़, वेलनिया तक जाता था। 10 वर्ष से नहर क्षतिग्रस्त होने से वेलनिया तक पानी नहीं पहुंचने से सैकड़ों बीघा जमीन से रबी की फसल उत्पादित नहीं हो पा रही है। तालाब से मात्र 1 किलोमीटर तक ही पानी की सप्लाई वर्तमान में की जा रही है। नहर कई जगह बीच-बीच में क्षतिग्रस्त हो चुकी है।
एक समय में झाडोल बांध का पानी कस्बे से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत खाखड़ तक जाता था लेकिन अब इस नहर का पानी 3 किलामीटर गोगला तक भी बमुश्किल पहुंच पा रहा है। इस नहर से पहले गोदाणा, गणेशपुरा, आवरड़ा महादेव जी का काड़, गोगला, सगपुरा, खाखड़ तक पहुंचता था। बीच में कई वर्षों तक वर्षा कम होने व नहर क्षतिग्रस्त होने से रबी की फसल के लिए पानी नहीं छोड़ा गया। जो धीरे-धीरे अब गोगला से आगे पूर्ण रूप से बन्द हो गया है। दोनों नहरें क्षतिग्रस्त होने व कच्ची मिटïटी की होने से हर वर्ष फूट जाती है, जिससे किसानों को नुकसान होता है।
सिंचाई विभाग की ओर से हर वर्ष महानरेगा योजनान्तर्गत रबी की फसल की बुवाई के दौरान सैकड़ों श्रमिकों का नियोजन कर नहरों की साफ सफाई व मरम्मत के नाम पर मिट्टी डलवाई जाती है। इसके बावजूद पानी नहीं पहुंच रहा है। हर वर्ष श्रमिकों पर लाखो रुपए खर्च हो रहे हैं। जिसका किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है।
10 करोड़ का प्रस्ताव ठण्डे बस्ते में
सिंचाई विभाग के अधिकारियों की ओर से झाड़ोल बांध की मरम्मत को लेकर 10 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा था लेकिन इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया जिससे न तो गाद निकासी का काम हो पा रहा है और न ही इसकी मरम्मत।
सिंचाई विभाग के अधिकारियों की ओर से झाड़ोल बांध की मरम्मत को लेकर 10 करोड़ का प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा था लेकिन इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया जिससे न तो गाद निकासी का काम हो पा रहा है और न ही इसकी मरम्मत।
इनका कहना है
विभाग ने वर्षों पूर्व एस्टीमेट बनाकर राज्य सरकार को भेजा हुआ है, स्वीकृति आने पर काम करा सकते हैं। विभाग की ओर से हर वर्ष रिमाइण्डर भी किया जा रहा है। देवेन्द्र पूर्बिया, कनिष्ठ अभियन्ता, सिंचाई विभाग, झाड़ोल
विधानसभा में मैं बजट के लिए पुरजोर तरीके से मुद्दा उठाऊंगा। यह तालाब उपखण्ड मुख्यालय के पेयजल का मुख्य स्रोत है। इसकी मरम्मत होनी ही चाहिए। बाबूलाल खराड़ी, विधायक झाड़ोल