गौरतलब है कि मेनार में प्रतिवर्ष सदियों से निर्जला एकादशी के मौके पर ओंकारेश्वर चौक ठाकुर जी मंदिर से देर शाम राम रेवाड़ी पालकी में बिराज ठाकुर जी नगर भ्रमण पर निकलते हैंं। इस दौरान पालकी को लेने भक्तों की होड़ मचती है। राम रेवाड़ी मुख्य मार्गोंं से गुजरते हुए मध्य रात्रि के बाद पुनः मन्दिर पहुंंचती है। इस दौरान रास्ते में राम रेवाड़ी का भव्य स्वागत किया जाता है वहींं भक्तों द्वारा भजनों की स्वर गुंजायमान होते हैंं। बड़ी संख्या में बुजुर्ग संग युवा भाग लेते हैंं। लेकिन इस बार आयोजन नहींं होगा। मंदिर में ठाकुर जी विशेष पूजा अर्चना एव आरती का आयोजन भी कुछ लोगोंं की उपस्थिति में ही सम्पन्न होगा ।
जल के महत्व का व्रत है निर्जला एकादशी: एकादशी का अति विशेष महत्व है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। निर्जला एकादशी का व्रत फल सभी एकादशी के समतुल्य होता है। इस व्रत में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल तक न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। पंडित अम्बा लाल शर्मा ने बताया की जो श्रद्धालु वर्षभर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं, उन्हें निर्जला एकादशी का उपवास अवश्य करना चाहिए। क्योंकि इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। ज्येष्ठ के माह के दौरान भीषण गर्मी अपने चरम पर होती है इसलिए इस समय जल का खास महत्व माना जाता है । निर्जला एकादशी जल के महत्व के बारे में बताती है। इसमें जल पिलाने और दान करने की परंपरा होती है। इस व्रत को ‘देवव्रत’ भी कहा जाता है।